स्कूलों में प्रयोगशालाएं तो बनीं, लेकिन अनुदेशकों का चयन अभी भी अधर में
प्रयागराज समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के कौशल विकास के लिए उच्च प्राथमिक और कंपोजिट विद्यालयों में प्रयोगशालाएं स्थापित कर दी गई हैं, लेकिन बच्चों को सिखाने के लिए अनुदेशकों की नियुक्ति अब तक नहीं हो सकी है।
प्रदेश सरकार ने 20.76 लाख रुपये की लागत से 48 स्कूलों में प्रयोगशालाएं तैयार की हैं, लेकिन तकनीकी अनुदेशकों का चयन छह महीने बाद भी अधर में लटका हुआ है।
📌 प्रमुख बिंदु:
✅ प्रयोगशालाएं स्थापित: प्रत्येक विद्यालय में 43,250 रुपये की लागत से उपकरण खरीदे गए हैं।
✅ बच्चों को होंगे कई लाभ: छात्र मिट्टी और जल परीक्षण, सोलर कार और कुकर बनाना, एलईडी टॉर्च, टेलिस्कोप, खिलौने बनाना, मोबाइल प्रोजेक्टर तैयार करना आदि सीख सकेंगे।
✅ अनुदेशकों का चयन लंबित: 9 सितंबर 2024 को आदेश जारी हुआ था, लेकिन अब तक नियुक्ति नहीं हो सकी।
✅ 2402 अनुदेशकों की जरूरत: प्रदेश के 886 विकासखंडों में कुल 2402 अनुदेशकों का चयन किया जाना है।
✅ मानदेय: चुने गए अनुदेशकों को ₹10,450 प्रतिमाह वेतन मिलेगा।
✅ चयन प्रक्रिया में देरी: जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति को जेम पोर्टल के माध्यम से अनुदेशकों का चयन करना था, लेकिन छह महीने बाद भी प्रक्रिया अधूरी है।
🎓 बच्चों के लिए क्यों जरूरी हैं अनुदेशक?
यह कार्यक्रम “लर्निंग बाय डूइंग” (सीखने का व्यावहारिक तरीका) को बढ़ावा देने के लिए है। इससे बच्चे विज्ञान और तकनीक से जुड़कर प्रैक्टिकल स्किल्स सीख सकेंगे। लेकिन बिना अनुदेशकों के यह योजना सिर्फ कागजों में सिमटकर रह गई है।
बीएसए प्रवीण कुमार तिवारी के अनुसार, चयन प्रक्रिया जारी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।
💡 समाधान क्या हो सकता है?
✔️ चयन प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जेम पोर्टल पर तत्काल भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए।
✔️ अनुदेशकों की भर्ती के लिए स्पष्ट समयसीमा तय की जाए।
✔️ बिना शिक्षक के प्रयोगशालाएं अनुपयोगी न बनें, इसके लिए वैकल्पिक शिक्षण समाधान निकाला जाए।
🚀 आगे क्या?
सरकार और शिक्षा विभाग को जल्द से जल्द अनुदेशकों की नियुक्ति पर ध्यान देना होगा, ताकि छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा का लाभ मिल सके। क्या आपको लगता है कि यह देरी छात्रों के भविष्य पर असर डाल सकती है? अपनी राय हमें कमेंट में बताएं!
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