2050 तक 2.5 करोड़ लोग होंगे पार्किंसन के शिकार, पूर्वी एशिया में सबसे ज्यादा खतरा
नई दिल्ली, 07 मार्च 2025: एक नए वैश्विक अध्ययन में दावा किया गया है कि 2050 तक दुनिया में 2.5 करोड़ से अधिक लोग पार्किंसन रोग की चपेट में आ सकते हैं। यह संख्या 2021 के मुकाबले 112% अधिक होगी। उम्र बढ़ने के साथ इस बीमारी का खतरा बढ़ता जा रहा है।
पूर्वी और दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा मरीज
चीन की कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, पार्किंसन के सबसे ज्यादा मामले पूर्वी एशिया में होंगे, जहां 2050 तक एक करोड़ से अधिक मरीज हो सकते हैं। इसके बाद दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश) में 68 लाख मरीज होने की संभावना है।
पार्किंसन क्या है और कैसे करता है प्रभावित?
पार्किंसन एक न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसऑर्डर है, जो दिमाग के उस हिस्से को प्रभावित करता है जो शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
मुख्य लक्षण:
- शरीर में कंपन (Tremors)
- चलने-फिरने और संतुलन बनाए रखने में कठिनाई
- मांसपेशियों में अकड़न
- स्मरण शक्ति और बोलने की क्षमता में गिरावट
- शरीर के अंगों का आपसी तालमेल बिगड़ जाना
2050 तक क्यों बढ़ेंगे पार्किंसन के मामले?
- बुजुर्ग आबादी में वृद्धि: उम्र बढ़ने के साथ पार्किंसन का खतरा बढ़ जाता है।
- वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय कारक: प्रदूषण और कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल से न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
- जीवनशैली में बदलाव: तनाव, खानपान की खराब आदतें और व्यायाम की कमी से यह बीमारी तेजी से फैल रही है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में शोध के लिए अहम अध्ययन
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन स्वास्थ्य नीति निर्माताओं और डॉक्टरों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। इससे पार्किंसन के इलाज और रोकथाम के लिए नई रणनीतियां बनाई जा सकेंगी।
निष्कर्ष
अगर समय रहते इस बीमारी की रोकथाम के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में यह दुनिया भर में एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन सकती है। जागरूकता बढ़ाने और बेहतर उपचार विकसित करने की आवश्यकता है ताकि लाखों लोगों को इस बीमारी से बचाया जा सके।