कोरोना में निकाली गई शिक्षिका को देना पड़ेगा पूरा वेतन: दिल्ली उच्च न्यायालय
नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी के दौरान एक निजी स्कूल द्वारा शिक्षिका को पहले कम वेतन देना और बाद में नौकरी से बाहर करना स्कूल प्रबंधन को भारी पड़ा है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्कूल प्रबंधन को आदेश दिया है कि वह शिक्षिका को ना केवल कोविड-19 के दौरान का पूरा वेतन दे, बल्कि छठे और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार पुराना वेतन भी भुगतान करे।
अदालत का आदेश और ब्याज का प्रावधान
अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि स्कूल प्रबंधन को आठ सप्ताह के भीतर शिक्षिका का बकाया भुगतान करना होगा। यदि निर्धारित समयावधि में भुगतान नहीं किया गया, तो स्कूल को इस राशि पर 9% वार्षिक ब्याज भी देना होगा।
शिक्षिका की दलील और अदालत की सहमति
शिक्षिका के वकील खगेश बी झा और शिखा शर्मा बग्गा ने अदालत में तर्क दिया कि शिक्षिका को 2 जनवरी 2015 से 31 जनवरी 2015 के बीच का वेतन छठे वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार मिलना चाहिए।
इसके अलावा, 1 जनवरी 2016 से अब तक का वेतन सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार देने का आदेश दिया गया। हालांकि, इसमें से वह राशि काटी जाएगी जो स्कूल ने पहले शिक्षिका को दी थी।
स्कूल की दलील खारिज
स्कूल प्रबंधन ने यह तर्क दिया कि कोविड-19 के दौरान स्कूल बंद थे और फीस का संग्रह कम हुआ। इसके अलावा, शिक्षिका द्वारा वेतन की मांग में देरी का हवाला दिया गया।
हालांकि, पीठ ने इन सभी दलीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि छात्रों से फीस वसूली गई थी, इसलिए शिक्षिका को उचित वेतन मिलना चाहिए था। देरी से की गई मांग को भी अदालत ने अवैध नहीं माना।
लंबे समय से कम वेतन पर कार्यरत शिक्षिका
शिक्षिका ने 23 अप्रैल 2021 को कोविड-19 के कारण नौकरी से निकाले जाने के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि वह एक दशक से ज्यादा समय तक प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) के तौर पर कम वेतन पर कार्यरत थीं।
इस मुद्दे पर अदालत में विस्तृत चर्चा के बाद न्यायालय ने शिक्षिका के पक्ष में निर्णय सुनाया।