आश्रित कोटे में दोबारा नौकरी पाने वाले को कोर्ट से राहत नहीं
स्थान: प्रयागराज | तिथि: 18 जनवरी 2025
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बार अनुकंपा आधार पर नौकरी प्राप्त करने के बाद, तथ्य छिपाकर दूसरी बार नौकरी पाने को अवैध करार दिया है। कोर्ट ने बुलंदशहर के प्राइमरी स्कूल सलेमपुर के प्रधानाध्यापक शिवदत्त शर्मा की नियुक्ति निरस्त करने के फैसले को सही ठहराया है। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया।
पहली नियुक्ति के बाद दोबारा नियुक्ति का प्रयास
याची शिवदत्त शर्मा ने 1981 में अपने पिता के निधन के बाद जूनियर हाई स्कूल बड़ागांव, बुलंदशहर में चौकीदार के रूप में अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त की थी। इसके बाद, बीएड करने के लिए उन्होंने अवैतनिक छुट्टी की अनुमति मांगी। 1986 में बीएड की योग्यता के आधार पर उन्होंने सहायक अध्यापक पद पर अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त की।
तथ्य छिपाने का आरोप
2018 में इस मामले में शिकायत दर्ज हुई कि शिवदत्त शर्मा ने सहायक अध्यापक पद पाने के लिए अपनी पहले की चौकीदार की नियुक्ति छिपाई थी। इस पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा। याची ने दलील दी कि उन्होंने बीएड की उपाधि बीएसए की अनुमति से प्राप्त की और नियुक्ति कमेटी द्वारा उन्हें सहायक अध्यापक बनाया गया था।
जांच और नियुक्ति निरस्तीकरण
शिकायत की जांच के लिए एक कमेटी गठित की गई। जांच रिपोर्ट में याची की सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति को नियमों का उल्लंघन माना गया और इसे निरस्त कर दिया गया। इसके खिलाफ याची ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
कोर्ट का निर्णय
हाई कोर्ट की एकल पीठ ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए नियुक्ति निरस्त करने को सही ठहराया। हालांकि, सहानुभूति के आधार पर कोर्ट ने वेतन की वसूली न करने का आदेश दिया। विशेष अपील में खंडपीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य तत्काल आर्थिक सहायता देना है, जिसे बार-बार प्राप्त करना इसका उल्लंघन है।
निष्कर्ष
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक बार अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने के बाद, दूसरी नियुक्ति का प्रयास अनैतिक और अवैध है। इस निर्णय ने अनुकंपा नियुक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक सख्त संदेश दिया है।