हाईकोर्ट के तीन अहम फैसले: अनुकंपा नियुक्ति, बैंक विवाद और अधिवक्ता मामला
अनुकंपा नियुक्ति पर हाईकोर्ट का फैसला
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कर्मचारी की मृत्यु के पांच वर्षों के भीतर दाखिल अनुकंपा नियुक्ति का दावा, फैसले में देरी के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि दावे पर समय से विचार करना नियोक्ता की जिम्मेदारी है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मृतक कर्मचारी के बेटे दिव्यांशु पांडे की याचिका पर की। याची के पिता की मृत्यु 2014 में हुई थी। बालिग होने के बाद 2018 में याची ने दावा किया। इविवि प्रशासन ने 2020 में याची को बुलाया, लेकिन 2022 और फिर 2023 में दावा खारिज कर दिया।
कोर्ट ने इविवि के आदेश को रद्द करते हुए रजिस्ट्रार को दावे पर पुनर्विचार का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि समयसीमा पार होने का लाभ नियोक्ता को देना अनुचित है।
ग्रामीण बैंक के सीनियर मैनेजर की गिरफ्तारी पर रोक
प्रयागराज। हाईकोर्ट ने मुरादाबाद के ग्रामीण बैंक के सीनियर मैनेजर साई प्रकाश की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए उनसे विवेचना में सहयोग करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने दिया।
याची पर होमलोन और ई-रिक्शा लोन में अनियमितता का आरोप है। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि 33 होमलोन में से 28 का निर्माण पूरा हो चुका है और बाकी का निर्माण जारी है। ई-रिक्शा लोन में भी कई लाभार्थी किस्तें चुका रहे हैं। याची ने मुकदमे को दुर्भावनापूर्ण बताया।
कोर्ट ने राज्य सरकार और बैंक से चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
10 वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही समाप्त
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालत में वादकारी दंपती के साथ मारपीट मामले में 10 वकीलों के खिलाफ चल रही अवमानना कार्यवाही समाप्त कर दी। न्यायमूर्ति एसडी सिंह और गौतम चौधरी की खंडपीठ ने यह फैसला दिया।
साक्ष्य के अभाव में कोर्ट ने अधिवक्ता संजीव श्रीवास्तव समेत 10 वकीलों को बरी कर दिया। हालांकि, दो वकीलों रणविजय सिंह और मोहम्मद आसिफ के खिलाफ कार्यवाही जारी रहेगी।
कोर्ट ने कहा कि जिन वकीलों पर घटना में शामिल होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है, उनके खिलाफ कार्रवाई जारी रखना अनुचित होगा।