शिक्षा में सुधार: पांचवीं और आठवीं कक्षा में फेल करने की नीति लागू
केंद्र सरकार ने शिक्षा के अधिकार कानून, 2009 में एक बड़ी विसंगति को दूर कर दिया है। अब नए सत्र से पांचवीं और आठवीं कक्षा की परीक्षा पास करने वाले छात्र ही अगली कक्षाओं में जा सकेंगे।
आठवीं तक फेल न करने की नीति के परिणाम
आठवीं तक फेल न करने की नीति के चलते बच्चे अगली कक्षा में तो पहुंच जा रहे थे, लेकिन उनमें से कइयों को आता-जाता कुछ भी नहीं था। इससे अगली कक्षा के शिक्षकों के सामने भी कई समस्याएं खड़ी होने लगी थीं।
निजी स्कूलों की मनमानी
निजी स्कूलों में फीस वृद्धि की कोई सीमा नहीं है। अभिभावकों को विशेष दुकानदारों से पाठ्यपुस्तके व यूनीफार्म खरीदने को विवश किया जाता है। यूनीफार्म बदलकर भी उनकी जेब काटी जाती है।
सरकारी स्कूलों की बदहाली
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और संसाधनों का अभाव है। बच्चों को टाट पर बैठकर पढ़ना पड़ता है। शिक्षकों के समायोजन का मामला न्यायालय में लंबित है।
सुधार की दिशा में कदम
अब केंद्र सरकार के निर्णय के बाद देश के सभी स्कूलों में पांचवीं और आठवीं कक्षा में फेल करने की नीति इसी सत्र से लागू कर दी गई है। इस सुधार में सबसे अच्छी बात यह है कि यदि कोई बच्चा फेल हो जाता है तो दो महीने बाद उसे एक मौका और दिया जाएगा।
शिक्षा में सुधार की उम्मीद
इस सुधार के बाद स्कूल, शिक्षक, अभिभावक और बच्चे सभी में पढ़ने-सीखने के प्रति जिम्मेदारी बढ़ेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।