### **हर साल डेढ़ लाख भारतीय छोड़ रहे अपनी नागरिकता, आंकड़ों में तेजी**
भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता अपनाने का रुझान तेजी से बढ़ता जा रहा है। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, **पिछले एक दशक में 15 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी है।** यह आंकड़ा देश के एक छोटे राज्य, जैसे गोवा या अरुणाचल प्रदेश की कुल आबादी के बराबर है।
### **नागरिकता छोड़ने की दर में उछाल**
2014 से 2023 के बीच कुल **15,04,512 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी।**
– **कोरोना काल के दौरान गिरावट** देखी गई थी, लेकिन बाद में संख्या में तेजी आई।
– सबसे अधिक नागरिकता छोड़ने वाले लोग **अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया** जैसे विकसित देशों की नागरिकता ले रहे हैं।
– कुछ ने **थाईलैंड, मलेशिया, पेरू, नाइजीरिया, और जांबिया** जैसे छोटे देशों की नागरिकता भी अपनाई।
– अब तक **135 देशों की नागरिकता** भारतीय छोड़ चुके लोग हासिल कर चुके हैं।
### **वर्षवार आंकड़े**
| **वर्ष** | **नागरिकता छोड़ने वाले लोग** |
|———|—————————–|
| 2014 | 1,29,328 |
| 2015 | 1,31,489 |
| 2016 | 1,41,603 |
| 2017 | 1,33,049 |
| 2018 | 1,34,561 |
| 2019 | 1,44,017 |
| 2020 | 85,256 |
| 2021 | 1,63,370 |
| 2022 | 2,25,620 |
| 2023 | 2,16,219 |
### **क्या है नागरिकता छोड़ने का कारण?**
1. **बेहतर अवसरों की तलाश:** लोग विदेशों में शिक्षा, रोजगार और व्यापार के बेहतर अवसरों के लिए नागरिकता छोड़ रहे हैं।
2. **स्थायित्व:** विदेशी नागरिकता लेने से वहां स्थायी निवास, स्वास्थ्य सुविधाओं और सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलता है।
3. **परिवार और रिश्ते:** विदेश में बसे भारतीय अक्सर वहां शादी कर लेते हैं या कारोबार शुरू करते हैं, जिससे उनकी नागरिकता बदलने की प्रक्रिया आसान हो जाती है।
### **कोरोना काल में कमी, लेकिन बाद में तेजी**
– 2020 में केवल **85,256 लोगों** ने नागरिकता छोड़ी थी।
– इसके बाद 2021, 2022 और 2023 में यह संख्या तेजी से बढ़ी।
– 2022 में **2,25,620 लोगों ने नागरिकता छोड़ी,** जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
### **राजनीतिक विवाद**
विपक्ष का आरोप है कि **भाजपा सरकार** के कार्यकाल में यह संख्या बढ़ी है। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि यह प्रवृत्ति पहले से जारी है।
– 2013 में **1,31,405 लोगों ने** नागरिकता छोड़ी थी।
– 2012 में यह आंकड़ा **1,20,923** था।
### **निष्कर्ष**
नागरिकता छोड़ने का यह रुझान भारत में बेहतर अवसरों की कमी और विदेशों में स्थायित्व की चाह को दर्शाता है। हालांकि, इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए भारत को रोजगार, शिक्षा और जीवनस्तर के अवसरों में सुधार करना होगा, ताकि नागरिक अपनी मातृभूमि को छोड़ने का निर्णय न लें।