काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता”: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ,पढ़े क्या था पूरा मामला

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# **महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी** 

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट द्वारा छह महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी के मामले में सख्त नाराजगी जताई है। न्यायालय ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि जजों के मूल्यांकन में उनकी **शारीरिक और मानसिक परिस्थितियों** को नजरअंदाज किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिला अधिकारों के प्रति संवेदनहीनता करार दिया और कहा कि महिलाओं के लिए ऐसे फैसले **असमान और अन्यायपूर्ण** हैं। 

## **”काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता”: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी** 
खंडपीठ में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन. कोटिस्वर सिंह ने महिला जजों के खिलाफ उठाए गए कदमों की निंदा की। जस्टिस नागरत्ना ने कहा: 
*”काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता। तब उन्हें समझ आता कि महिलाओं को किन कठिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।”* 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन जजों को उनके **गर्भावस्था और गर्भपात** के दौरान आई परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए बर्खास्त कर दिया गया। यह न्याय की मूल भावना का उल्लंघन है। 

## **बर्खास्तगी का आधार और सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति** 
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने जून 2023 में छह महिला सिविल जजों को खराब प्रदर्शन के आधार पर बर्खास्त कर दिया था। इनमें से चार को 1 अगस्त 2023 को कुछ शर्तों के साथ बहाल कर दिया गया, लेकिन दो जजों – अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को बहाल करने से इंकार कर दिया गया। 
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि: 
– अदिति कुमार ने गर्भपात और पारिवारिक समस्याओं के कारण कठिन समय का सामना किया। 
– उनके भाई को कैंसर होने की खबर के बाद उनका प्रदर्शन प्रभावित हुआ। 
– इसके बावजूद, **गर्भधारण और बच्चे की देखभाल** के लिए मिले अवकाश को भी उनके खराब प्रदर्शन का हिस्सा मान लिया गया। 

## **महिला अधिकारों का उल्लंघन** 
याचिकाकर्ता की वकील चारु माथुर ने दलील दी कि: 
– चार साल के उत्कृष्ट सेवा रिकॉर्ड के बावजूद **बिना तय प्रक्रिया अपनाए** जजों को बर्खास्त किया गया। 
– कोविड-19 महामारी के दौरान कामकाज का मात्रात्मक मूल्यांकन करना उचित नहीं था। 
– यह निर्णय महिला जजों के **मूलभूत अधिकारों** का उल्लंघन है। 

## **हाई कोर्ट को नोटिस जारी** 
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए मध्यप्रदेश हाई कोर्ट और बर्खास्त किए गए जजों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने हाई कोर्ट से महिला जजों की बर्खास्तगी का विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है। 

## **सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी** 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि: 
*”न्यायिक प्रक्रिया में समानता और संवेदनशीलता दोनों जरूरी हैं। महिला जजों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।”* 

खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि: 
– कोविड काल के दौरान प्रदर्शन का मूल्यांकन **अनुचित** था। 
– महिला जजों की शारीरिक और मानसिक परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए था। 

## **निष्कर्ष** 
यह मामला महिलाओं के अधिकारों और न्याय प्रणाली में संवेदनशीलता की कमी को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को **न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत** करार दिया। यह स्पष्ट संदेश देता है कि न्यायिक प्रक्रिया में **समानता और इंसानियत** का होना अनिवार्य है। 

आगे की सुनवाई में इस मामले से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम महिला अधिकारों की रक्षा और न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है।

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