सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: जिलाधिकारियों की पत्नियों को सहकारी सोसायटियों में पदेन नियुक्ति औपनिवेशिक सोच

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**सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: जिलाधिकारियों की पत्नियों को सहकारी सोसायटियों में पदेन नियुक्ति औपनिवेशिक सोच** 

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सहकारी सोसायटियों में जिलाधिकारियों और अन्य शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों की पत्नियों को पदेन नियुक्ति देने के औपनिवेशिक प्रावधानों में संशोधन करने का निर्देश दिया है। **न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां** की खंडपीठ ने इसे पुरानी सोच का प्रतीक बताते हुए कहा कि ऐसे नियम बदलने की आवश्यकता है ताकि पदों पर नियुक्तियां योग्यता और निष्पक्षता के आधार पर हों। 

### **सरकार को आदर्श नियम बनाने का निर्देश** 
पीठ ने सरकार को स्पष्ट किया कि जो सहकारी सोसायटियां सरकार से लाभ लेती हैं, वे सरकार द्वारा बनाए गए **आदर्श नियमों और उपनियमों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।** सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसे प्रावधान बनाए जाएं जिनसे यह सुनिश्चित हो कि किसी भी प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी या परिवार का सदस्य होने के कारण स्वतः किसी पद पर नियुक्ति न दी जाए। 

### **बुलंदशहर महिला समिति का मामला बना आधार** 
यह टिप्पणी बुलंदशहर जिला महिला समिति से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आई। पीठ ने कहा कि सरकार को ऐसे संशोधित नियम बनाने चाहिए जिनके तहत किसी भी सोसायटी द्वारा नियमों के उल्लंघन की स्थिति में उसकी **वैधता रद्द करने का प्रावधान** हो। 

### **सरकारी तर्क खारिज** 
उत्तर प्रदेश सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने तर्क दिया कि सरकार को इन सोसायटियों की ओर से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह समय औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आने का है। 

### **सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता** 
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “सरकार को चाहिए कि वह स्पष्ट और निष्पक्ष नियम बनाए ताकि केवल योग्य और सक्षम लोग ही इन पदों को संभाल सकें।” अदालत ने सरकार को ऐसी स्थिति में सक्रिय कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया, जहां सहकारी सोसायटियों का दुरुपयोग हो रहा है। 

### **निष्कर्ष** 
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सहकारी सोसायटियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रशासनिक अधिकारियों के पारिवारिक सदस्यों को केवल उनके रिश्तों के आधार पर लाभ न मिले। यह निर्णय शासन प्रणाली में पारदर्शिता और जन विश्वास को मजबूत करने में सहायक होगा। 

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