⚖️ सोशल मीडिया पर सिर्फ शब्द ही नहीं, भाव भी अपराध माने जाएंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट
✍ | हाईकोर्ट ने कहा कि संदेश में धर्म विशेष का नाम न होने पर भी उसका भाव यदि भड़काऊ है, तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा।
📢 कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि व्हाट्सएप या किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भेजा गया ऐसा संदेश,
जो किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ वैमनस्य फैलाने वाला हो, कानूनन अपराध है।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि
भले ही संदेश में सीधे तौर पर धर्म विशेष का उल्लेख न हो, लेकिन यदि उसका भाव धार्मिक समूह को निशाना बनाता है, तो उसे अपराध माना जाएगा। 🚨
📝 मामला और याचिका
मेरठ निवासी आफाक अहमद पर आरोप था कि उन्होंने व्हाट्सएप पर ऐसा संदेश साझा किया,
जिसमें सीधे किसी धर्म का नाम नहीं था, लेकिन उसमें यह भाव झलक रहा था कि एक खास समुदाय को अन्याय का शिकार बनाया गया।
याची ने एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।
हालांकि, कोर्ट ने साफ कहा कि संदेश का वास्तविक निहितार्थ और प्रभाव ही अपराध तय करने का आधार होगा। ⚖️
📚 कानून क्या कहता है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (2) के अनुसार,
यदि कोई कार्य या संदेश धार्मिक, भाषायी, जातीय या क्षेत्रीय समूहों के बीच वैमनस्य या दुश्मनी पैदा करता है,
तो यह अपराध माना जाएगा।
दोष सिद्ध होने पर तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। ⚖️
💡 कोर्ट की नसीहत
हाईकोर्ट ने कहा कि आज के डिजिटल युग में एक साधारण संदेश भी समाज में
व्यापक असर डाल सकता है।
इसलिए नागरिकों को सावधानी बरतनी चाहिए और कोई भी ऐसा कंटेंट साझा नहीं करना चाहिए
जो सामाजिक सौहार्द और धार्मिक सद्भाव को ठेस पहुंचाए। 🙏
“शब्दों के पीछे छिपा उद्देश्य ही समाज में वैमनस्य का बीज बोता है। कानून केवल शब्दों को नहीं, उनके निहितार्थ और प्रभाव को भी देखता है।” — इलाहाबाद हाईकोर्ट
🔍 अन्य संबंधित मामले
- मामला 1: कोर्ट ने मेरठ निवासी की एफआईआर रद्द करने की मांग खारिज की।
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- मामला 3: छात्रवृत्ति घोटाले में आरोपी स्कूल प्रबंधक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक।