प्रदेश सरकार का बड़ा फैसला: मृत कर्मचारियों के आश्रितों पर नई पाबंदियां 😔✍️
उत्तर प्रदेश सरकार ने मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों को दी जाने वाली अनुकंपा नियुक्ति के नियमों में बड़ा बदलाव कर दिया है। मंगलवार को प्रमुख सचिव कार्मिक एम. देवराज ने उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती (चौदहवां संशोधन) नियमावली-2025 जारी कर दी।
नया प्रावधान 📜
नियमावली के नियम 5 (1) के तहत अब यह साफ कर दिया गया है कि:
- यदि कोई कर्मचारी समूह ‘ग’ या ‘घ’ (क्लर्क, चतुर्थ श्रेणी आदि) के पद पर कार्यरत रहते हुए निधन करता है, तो उसके आश्रित को उसी से ऊँचे समूह की नौकरी नहीं दी जाएगी।
- यानी यदि मृतक कर्मचारी समूह ‘घ’ में था तो उसके आश्रित को ‘ग’ या उससे ऊपर की नौकरी नहीं मिल सकेगी।
टाइपिंग की अनिवार्यता ⌨️
नियमावली में यह भी प्रावधान जोड़ा गया है कि:
- यदि चयनित आश्रित को टाइपिंग नहीं आती है, तो उसे एक साल में कम से कम 25 शब्द प्रति मिनट की गति से टाइपिंग सीखनी होगी।
- यदि वह ऐसा नहीं कर पाता, तो उसे चतुर्थ श्रेणी (ग्रुप-डी) पद पर समायोजित कर दिया जाएगा।
- और अगर समय पर कार्यभार ग्रहण नहीं करता, तो उसकी सेवा समाप्त कर दी जाएगी।
किन पदों पर नहीं मिलेगी नौकरी 🚫
नई नियमावली के अनुसार, आश्रितों को अब निम्न पदों पर अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिलेगी:
- उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के दायरे वाले पद
- पहले कभी आयोग के दायरे में रहे पद
- उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) से भर्ती होने वाले पद
सुप्रीम कोर्ट का हवाला ⚖️
यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के प्रेमलता बनाम राज्य सरकार व अन्य (5 अक्तूबर 2021) में दिए गए आदेश के आधार पर किया गया है।
सरकारी कलम की राय 🖊️
यह नया नियम कई सवाल खड़े करता है।
- जब कोई परिवार अपने सदस्य को खो देता है, तो आश्रितों के लिए अनुकंपा नियुक्ति ही सहारा होती है।
- ऐसे में नौकरी पर पाबंदियां लगाना उनके साथ अन्याय जैसा है।
- टाइपिंग जैसी शर्तें थोपने से गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के आश्रित और ज़्यादा मुश्किल में पड़ सकते हैं।
👉 सरकार को चाहिए कि ऐसे निर्णय लेने से पहले कर्मचारी संगठनों और आम कर्मचारियों की राय भी ली जाए। आखिरकार यह नियम सीधे उन परिवारों को प्रभावित करेगा जो पहले ही गहरे संकट से गुजर रहे होते हैं।
📌 निष्कर्ष: यह संशोधन केवल कानूनी औपचारिकता भर नहीं है, बल्कि हजारों कर्मचारियों के आश्रितों की आजीविका और भविष्य पर सीधा असर डालेगा। सरकार को चाहिए कि ऐसे संवेदनशील मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाए।