पहले तबादले की बाधा पार करते ही फर्जी नियुक्ति पाने वालों को पकड़ना मुश्किल 🕵️♂️
प्रदेश में केवल एक्स-रे टेक्नीशियन ही नहीं — कई पदों पर एक बार तबादला कर लेने के बाद फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी करने वालों की पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है। जहां जुगाड़, वहीं पहली बार नियुक्ति; दूसरे जिले में जाने पर दस्तावेज़ों की पड़ताल अक्सर नहीं होती।
कहानी का सार — कैसे बनता है यह जाल ⚠️
स्वास्थ्य विभाग के कुछ जिलों में मुख्य चिकित्साधिकारी रह चुके निदेशक बताते हैं कि अपने कार्यकाल के दौरान गोपनीय तरीके से कराई गई जांच में कई ऐसे केस सामने आए जहाँ लोग फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे नौकरी कर रहे थे।
इन अधिकारियों का कहना है कि अक्सर ऐसे लोग पहली बार उसी जिले में कार्यभार ग्रहण करते हैं जहाँ जुगाड़ संभव हो — यानि भर्ती/नियुक्ति कराने में किसी प्रकार का नेटवर्क या मिलीभगत मौजूद रहती है। इसके बाद करीब छह महीने से एक साल के भीतर उन्हें तबादला कराकर दूसरे जिले भेज दिया जाता है, जहाँ उनकी नियुक्ति से जुड़ी दस्तावेज़ी जाँच आमतौर पर नहीं की जाती।
विभागीय मिलीभगत और भर्ती में भ्रष्याचार 💸
अधिकारी यह भी बताते हैं कि रैकेट से जुड़े क्लर्क या चिकित्साधिकारी — जिनकी नियुक्ति प्रक्रिया में भूमिका होती है — वे आसानी से सर्विस बुक सहित अन्य पत्रावली भी तैयार करा लेते हैं।
ऐसा होने पर जिनसों ने पहली नियुक्ति वहीं ली थी, वे बाद में दूसरे जिलों में जाकर अपनी सेवाएँ देने लगते हैं — और नए जिले में दस्तावेजों की सघन जाँच नहीं होने के कारण पकड़े नहीं जाते।
2008 की भर्ती — एक्स-रे टेक्नीशियनों का संदिग्ध रिकॉर्ड 🧾
चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के मानव संपदा पोर्टल पर दर्ज फैक्ट शीट (पी2) के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2008 की एक्स-रे टेक्नीशियन भर्ती के मामलों में फर्जीवाड़ा करने वाले रैकेट के तार किसी न किसी रूप में कानपुर मंडल से जुड़े दिखते हैं — और फर्रुखाबाद का कनेक्शन विशेष रूप से उभरकर आता है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि 2008 में कुल जगह 140 लोगों ने नौकरी हासिल की है। इसमें 61 अतिरिक्त हैं — और इनकी सर्विस रेकॉर्ड देखने पर अधिकांश ने दो साल के अंदर तबादला ले लिया।
— कुछ उदाहरण: जिसने पहले बलिया में कार्यभार ग्रहण किया था वह बाद में बांदा में तैनात पाया गया; जिसने आगरा में कार्यभार लिया था वह अब वाराणसी या चंदौली में सेवाएँ दे रहा है।
खास बात यह है कि इन सभी के नियुक्ति पत्र हाथ से लिखकर जारी किए गए थे — जो संदिग्धता को और अधिक पुष्ट करते हैं।
कौन-कहां से जुड़े — आंकड़ों की झलक 📊
मानव संपदा पोर्टल पर दर्ज तथ्यों के आधार पर 2008 की भर्ती में जिन 61 एक्स-रे टेक्नीशियन का गृह क्षेत्र रिकॉर्ड किया गया, उनमें जिलेवार बंटवारा इस प्रकार दिखता है:
- फर्रुखाबाद: 19
- एटा: 16
- मैनपुरी: 6
- कन्नौज: 4
- वाराणसी: 3
- कासगंज: 1
- मेरठ: 2
- प्रयागराज: 1
- औरैया: 1
- झांसी: 1
- अंबेडकर नगर: 1
- शामली: 1
- मुरादाबाद: 1
- बाराबंकी: 1
- बिजनौर: 1
- बलिया: 1
यद्यपि यह रिकॉर्ड बताता है कि इन उम्मीदवारों का गृह क्षेत्र किस जिले के बताए गए, वास्तव में वे किस जिले के निवासी हैं — यह जाँच का विषय है, क्योंकि फर्जीवाड़ा करने वाले अक्सर अपना गृह क्षेत्र भी बदलते रहे हैं।
कानपुर मंडल और रैकेट — क्या संकेत मिलते हैं? 🔍
फैक्ट शीट के रिकॉर्ड के आधार पर रैकेट के तार कानपुर मंडल से जुड़ते दिखते हैं — और 2016 में भी इसी रैकेट के सक्रिय रहने की आशंका जताई गई है। उदाहरण के तौर पर फर्रुखाबाद में जिस एक्स-रे टेक्नीशियन को नियुक्ति दी गई, उसका गृह क्षेत्र आगरा दर्ज था, पर जाँच में वह एटा का निकला — यह विसंगति संदेह को बढ़ाती है।
समस्या का मूल और क्या किया जा सकता है — सुझाव ✍️
मूल समस्या: नियुक्ति की प्रारंभिक प्रक्रियाओं में मिलीभगत और स्थानीय स्तर पर जुगाड़; दूसरी ओर, तबादला करा लेने के बाद दूसरे जिले में दस्तावेज़ों की सतर्क जाँच न होना।
संभावित कदम:
- नियुक्ति समय पर डिजिटल वेरिफिकेशन — दस्तावेज़ों की ऑनलाइन सत्यापन प्रक्रिया सख्त करना।
- मानव संपदा पोर्टल और संबंधित रिकॉर्ड्स की पारदर्शिता बढ़ाना और नियमित ऑडिट कराना।
- तहकीकात में शामिल अधिकारियों की पहचान और जवाबदेही तय करना — ताकि किसी भी प्रकार के स्थानीय रैकेट का पर्दा उठ सके।
- ताबड़तोड़ तबादलों पर रोक/नियमन ताकि किसी भी संदिग्ध नियुक्ति को दूसरी जगह रहने से पहले जाँचा जा सके।