⚖️ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: आयु सीमा में छूट लेने वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी की सीटों पर दावा नहीं कर सकेंगे
✍️ सरकारी कलम डेस्क | नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती से जुड़े एक अहम मामले में स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई अभ्यर्थी आरक्षित वर्ग (OBC/SC/ST) की आयु सीमा छूट का लाभ उठाकर परीक्षा में शामिल होता है, तो बाद में वह अनारक्षित (General) सीटों पर दावा नहीं कर सकता।
यह फैसला कर्मचारी चयन आयोग (SSC) की कांस्टेबल (जीडी) भर्ती से जुड़े विवाद में आया है।
📌 मामला क्या था?
- SSC की कांस्टेबल (जीडी) भर्ती में आयु सीमा 18 से 23 वर्ष तय थी।
- OBC उम्मीदवारों को 3 वर्ष की छूट दी गई थी।
- कुछ अभ्यर्थियों ने OBC के तौर पर आवेदन कर छूट का लाभ लिया, परीक्षा पास की और अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों से अधिक अंक भी प्राप्त किए।
- लेकिन, उनकी रैंक चयनित OBC उम्मीदवार से कम थी, इस वजह से नियुक्ति नहीं मिली।
- इसके बाद अभ्यर्थियों ने त्रिपुरा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
🏛️ हाईकोर्ट का फैसला
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि—
👉 “योग्यता (Merit) के आधार पर इन्हें सामान्य सीटों पर भी माना जाए।”
⚖️ सुप्रीम कोर्ट का रुख
केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
- जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।
- पीठ ने कहा कि अभ्यर्थियों ने जब आरक्षित श्रेणी में आयु छूट का लाभ उठाया, तो वे सामान्य श्रेणी की सीटों पर दावा नहीं कर सकते।
- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जितेंद्र कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश (2010) का मामला इस केस पर लागू नहीं होता, क्योंकि वह यूपी के अलग कानूनी ढांचे पर आधारित था।
👩🎓 अभ्यर्थियों के लिए क्या मतलब?
- यदि आप आरक्षित श्रेणी की आयु छूट लेकर परीक्षा देते हैं, तो बाद में आप जनरल सीट पर चयन का दावा नहीं कर सकते—even अगर आपके अंक जनरल से अधिक क्यों न हों।
- अब आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को यह तय करना होगा कि वे छूट का लाभ लेना चाहते हैं या सामान्य सीट पर प्रतिस्पर्धा करना।
📢 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आने वाले समय की सभी भर्तियों पर असर डालेगा। अब भर्ती प्रक्रियाओं में आयु सीमा छूट लेने वाले उम्मीदवार केवल अपनी श्रेणी की सीटों पर ही दावेदारी कर पाएंगे।
➡️ यह फैसला अभ्यर्थियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है—छूट लो या सामान्य सीट पर दावेदारी करो, दोनों एक साथ संभव नहीं।
👉 साथियों! आप इस फैसले को कैसे देखते हैं❓
क्या यह युवाओं के हित में है या उनके विकल्पों को सीमित करता है? अपनी राय हमें कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं। ✍️