डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: गुरु, राष्ट्रपति और रॉयल स्वागत
परिचय
- जन्म: 5 सितम्बर 1888, तिरुत्तनी, तमिलनाडु
- निधन: 17 अप्रैल 1975
- शिक्षक-दार्शनिक, भारत के दूसरे राष्ट्रपति, और आधुनिक भारत के गर्व-के-द्वार।
शिक्षा और प्रोफेसरियल योगदान
- मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में एम.ए.।
- मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज, मैसूर और कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक रहे।
- 1931–36 तक आंध्र विश्वविद्यालय और 1939–48 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
राजनीतिक जीवन
- 1949–52 तक सोवियत संघ में भारत के राजदूत।
- 1952–62 तक भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति।
- 1962–67 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति रहे।
स्टेशन पर ‘रॉयल’ स्वागत — एक भावनात्मक दृश्य
1963 में जब राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ब्रिटेन के लिए राजकीय दौरे पर गए, तब लंदन के विक्टोरिया स्टेशन पर स्वयं महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय और प्रिंस फिलिप उन्हें ट्रेन से उतरते समय स्वागत के लिए उपस्थित थे। राष्ट्रपति और महारानी ने हाथ मिलाया, उनके आगे एक सम्मान रथ तैयार था और उन्हें सम्मान स्वरूप सम्मान रक्षक तैनात थे। इसके बाद वे रथ द्वारा बकिंघम पैलेस गए। यह दृश्य अत्यंत भावुक और गरिमा से भरा था। यह अद्भुत क्षण दर्शाता है कि भारत के द्वितीय राष्ट्रपति को कितनी गहराई से सम्मानित किया गया था।(criticalpast.com, Republic World, Wikipedia)
शिक्षक दिवस की प्रेरणा
जब वे राष्ट्रपति बने, तब उनके स्कूल के कुछ शिष्य और मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा व्यक्त की। राधाकृष्णन ने विनम्रतापूर्वक कहा:
“अगर आप मेरा जन्मदिन मनाना चाहते हैं, तो इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाइए।”
तब से हर साल 5 सितम्बर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह संदेश आज भी शिक्षकों और छात्रों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
दार्शनिक दृष्टिकोण
- भारतीय दर्शन को पश्चिमी संसार में समझाने वाले अधुनीनवादी दार्शनिक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
- उनके अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य केवल ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और मानवता विस्तार है।
विवादात्मक पहलू
- प्रतिलिपि विवाद (Plagiarism): उनके एक छात्र जदुनाथ सिन्हा ने आरोप लगाया कि Indian Philosophy (1927) पुस्तक में बिना उचित संदर्भ दिए सामग्री ली गई। मामला कोर्ट तक गया, लेकिन अंततः समझौता अनैमित ही रहा।(criticalpast.com, Republic World, Wikipedia)
- निजी जीवन की आलोचना: कुछ बायोग्राफिकल स्रोतों में उनकी विवाहेतर संबंधों का उल्लेख है, जिसने उनकी नैतिक छवि को विवाद के घेरे में लाया।
सम्मान और पुरस्कार
- 1954 में भारत रत्न से सम्मानित।
- ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें नाइटहुड (Sir) का सम्मान मिला, लेकिन स्वतंत्रता के बाद उन्होंने इसका उपयोग बंद कर दिया।
- कई विदेशी सम्मान और मानद उपाधियों से विभूषित रहे।
डॉ. राधाकृष्णन का जीवन शिक्षा, दर्शन और कूटनीति का अद्भुत संगम था। उन्हें शिक्षा-क्षेत्र में गुरु-देव का दर्जा प्राप्त है। वहीं 1963 में इंग्लैंड के स्टेशन पर महारानी द्वारा सम्मानित होना एक ऐसा दृश्य है जिसने उनके व्यक्तित्व और भारत-राष्ट्र का गौरव दुनिया के सामने उजागर कर दिया।