⚖ सुप्रीम कोर्ट की सख़्त चेतावनी: जजों पर बेबुनियाद आरोप बर्दाश्त नहीं — सरकारी कलम
नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी में कहा कि उच्च न्यायालय के जजों को किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट के जजों से कम नहीं आंका जा सकता और उन्हें भी समान संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने यह टिप्पणी तेलंगाना हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ अवमाननापूर्ण आरोप लगाने वाले एक याचिकाकर्ता और उसके वकीलों को बिना शर्त माफ़ी मांगने के निर्देश देते हुए की।
🔍 सुप्रीम कोर्ट की चिंता
पीठ ने कहा कि अब यह प्रवृत्ति बढ़ रही है कि जब भी किसी मामले में राजनीतिक हस्ती शामिल होती है, तो याचिकाकर्ता को लगता है कि उसे न्याय नहीं मिला और वह मामला स्थानांतरित कराने की मांग करता है।
कोर्ट ने साफ कहा —
“हाईकोर्ट के जजों पर बिना कारण आलोचना करना और आरोप लगाना अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
📌 पृष्ठभूमि
मामला उस समय उठा जब तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत दर्ज आपराधिक केस को खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के जज पर पक्षपात और अनुचितता का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिका दायर की थी।
अन्य महत्वपूर्ण फैसले
1️⃣ मेधा पाटकर को मानहानि मामले में राहत नहीं
- दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा 25 साल पहले दायर मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा।
- कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अच्छे आचरण के आधार पर दी गई राहत में वह हस्तक्षेप नहीं करेगा।
2️⃣ ‘तलाक-ए-हसन’ पर अंतिम सुनवाई 19-20 नवंबर को
- यह मुस्लिम समुदाय में एकतरफा तलाक का तरीका है, जिसमें पति तीन महीने में हर महीने एक बार “तलाक” कहकर शादी तोड़ सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं की अंतिम सुनवाई की तारीख तय की और राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से विचार मांगे।
3️⃣ मुंबई में ‘कबूतरखानों’ पर रोक
- बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा, जिसमें बीएमसी को कबूतरखानों पर रोक लगाने और कबूतरों को दाना डालने वालों पर मामला दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।
- आदेश के खिलाफ अपील को जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने खारिज कर दिया।
📢 सरकारी कलम की राय:
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए बेहद अहम है। साथ ही, ये फैसले यह भी दिखाते हैं कि अदालतें सामाजिक मुद्दों से लेकर व्यक्तिगत अधिकारों तक, हर स्तर पर न्याय और व्यवस्था की रक्षा के लिए सक्रिय हैं। 🏛