📰 मामूली वर्तनी त्रुटि बनी रिहाई में बाधा – हाईकोर्ट ने दी सख्त टिप्पणी
📝 लेखक: सरकारी कलम टीम
📅 प्रकाशन तिथि: 3 अगस्त, 2025
🇮🇳 संविधान का अनुच्छेद 21 सिर्फ कागज पर नहीं, व्यवहार में भी लागू हो – इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा कि सिर्फ नाम की वर्तनी में मामूली गलती के कारण किसी व्यक्ति की रिहाई में देरी करना उसकी स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति समीर जैन की पीठ ने ब्रह्मशंकर नामक व्यक्ति की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, जो जमानत मिलने के बावजूद 17 दिन अतिरिक्त जेल में बंद रहा।
📌 मामला क्या था?
यह मामला मेरठ के भ्रष्टाचार विरोधी थाना क्षेत्र से जुड़ा है।
ब्रह्मशंकर, जो बुलंदशहर में फील्ड अफसर के पद पर तैनात थे, उन्हें ₹5000 की रिश्वत लेने के आरोप में 13 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया गया था।
- उन्होंने पहले जिला अदालत में जमानत अर्जी दी थी, जो खारिज हो गई।
- इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- हाईकोर्ट ने 8 जुलाई 2025 को उनकी जमानत अर्जी मंजूर कर ली।
- लेकिन जमानत आदेश में उनके नाम की वर्तनी में गलती हो गई, जिससे रिहाई की प्रक्रिया रुक गई।
⚖️ कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा:
❝ भारत के नागरिक का जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षित है। इसे तकनीकी त्रुटियों की बलि नहीं चढ़ाया जा सकता। ❞
- कोर्ट ने यह भी कहा कि नाम की वर्तनी में मामूली गलती के आधार पर किसी को जेल में रखना न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- न्यायमूर्ति ने याची की ओर से दाखिल सुधार प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए, दस्तावेजों से पहचान की पुष्टि कर रिहाई के आदेश दिए।
📣 क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
✅ यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि तकनीकी औपचारिकताओं से ऊपर नागरिकों की स्वतंत्रता है।
✅ यह निचली अदालतों और जेल प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि वे मानवाधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।
🚨 निष्कर्ष:
ब्रह्मशंकर जैसे मामले यह दिखाते हैं कि भारत जैसे लोकतंत्र में भी कई बार न्याय प्रक्रिया तकनीकी कारणों से बाधित हो जाती है, और उसका खामियाजा आम नागरिक को भुगतना पड़ता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला एक साहसिक और संवेदनशील कदम है, जो न केवल कानूनी प्रक्रिया को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की सीख देता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि—
🗣️ “न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर है।”
📢 सरकारी कलम ऐसे ही मुद्दों पर आपके लिए लाता है सही जानकारी, शिक्षक-कर्मचारी और आम नागरिकों की आवाज बनकर।
✍️ अगर आपके पास भी कोई ऐसा मामला है, तो हमें भेजें – हम आपकी आवाज उठाएंगे।
#मौलिक_अधिकार #इलाहाबादहाईकोर्ट #जमानत #न्यायपालिका #सरकारीकलम #संविधान #अधिकारोंकीरक्षा #BreakingNews