⚖️ अनुकंपा नियुक्ति में लंबित आपराधिक मामला अब बाधा नहीं! हाईकोर्ट का अहम फैसला 📰
🗓️ जुलाई 2025 | इलाहाबाद
उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में अनुकंपा के आधार पर नियुक्तियों से जुड़े मामलों में एक नया मोड़ आ गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा है कि—
🔴 “सिर्फ किसी आपराधिक मामले का लंबित होना, अनुकंपा नियुक्ति से इनकार का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।”
यह फैसला देवरिया के रहने वाले महेश सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया।
🏛️ न्यायमूर्ति अजित कुमार की टिप्पणी 👨⚖️
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि—
- नियोक्ता को नियुक्ति के मामलों में निष्पक्ष विवेक का प्रयोग करना चाहिए।
- केवल लंबित मुकदमे का हवाला देकर किसी शोकग्रस्त परिवार की मदद से इनकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के “अवतार सिंह बनाम भारत संघ” मामले का हवाला देते हुए कहा कि—
🔍 “जहां नियमित नियुक्तियों में कड़े नियम लागू होते हैं, वहीं अनुकंपा नियुक्तियों में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना ज़रूरी है।”
📝 क्या था मामला?
- याची महेश सिंह चौहान के पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था।
- जिला मजिस्ट्रेट द्वारा चरित्र प्रमाणपत्र तो जारी किया गया, लेकिन उसमें एक टिप्पणी दी गई कि नियुक्ति का निर्णय लंबित आपराधिक मामले के परिणाम पर निर्भर करेगा।
- इसी आधार पर अनुकंपा नियुक्ति अस्वीकृत कर दी गई।
⚖️ कोर्ट ने क्या कहा?
- कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिजनों को तत्काल आर्थिक सहायता देना होता है।
- यदि सिर्फ लंबित मुकदमे के आधार पर नियुक्ति को स्थगित या निरस्त किया जाता है, तो यह उद्देश्य विफल हो जाता है।
- इसलिए अदालत ने आदेश दिया कि:
🗂️ “मामले पर नए सिरे से विचार किया जाए और नियुक्ति के निर्णय में मानवीय पक्ष को प्राथमिकता दी जाए।”
📌 यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
✅ इससे उन हजारों परिवारों को राहत मिलेगी जिनके सदस्य सरकारी सेवा में रहते हुए दिवंगत हो गए हैं और उनके परिजन मुकदमेबाजी के कारण अनुकंपा नियुक्ति से वंचित हो जाते हैं।
✅ यह फैसला बताता है कि अब लंबित मुकदमा = नियुक्ति से इनकार का सीधा समीकरण नहीं रहेगा।
🙋 आपकी राय?
क्या आपको लगता है कि अनुकंपा नियुक्ति जैसे मानवीय मामलों में व्यावहारिक दृष्टिकोण जरूरी है?
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✒️ लेखक: सरकारी कलम टीम
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