⚡ यूपी पंचायत चुनाव की तैयारी में आम आदमी पार्टी – स्कूल विलय बना बड़ा मुद्दा!
📅 तारीख: जुलाई 2025
✍️ सरकारी कलम डेस्क
🗳️ गुजरात-पंजाब उपचुनाव में जीत से मिली ऊर्जा, अब निगाहें यूपी पंचायत चुनाव पर
गुजरात और पंजाब के हालिया उपचुनावों में मिली जीत ने आम आदमी पार्टी (AAP) को नया उत्साह दे दिया है। दिल्ली विधानसभा में सत्ता गंवाने के बाद पार्टी काफी हतोत्साहित थी, लेकिन अब उसने उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव 2026 को लक्ष्य बनाकर राजनीतिक रणनीति तेज़ कर दी है।
🏫 परिषदीय स्कूलों के विलय पर पार्टी का आक्रामक रुख
प्रदेश में हाल ही में 10,827 परिषदीय स्कूलों के विलय (पेयरिंग) को लेकर जो निर्णय लिया गया है, वह अब आम आदमी पार्टी का प्रमुख चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है।
पार्टी के प्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस मुद्दे को जमीन से लेकर संसद तक जोर-शोर से उठाया है।
🏛️ राज्यसभा में मुद्दा उठा, नियम 267 के तहत चर्चा की मांग
सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा में नियम 267 के तहत नोटिस देकर स्कूल विलय के मुद्दे पर तत्काल चर्चा कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि:
“यह विषय अति गंभीर है, सदन की सारी कार्यवाही रोककर इस पर तुरंत बहस होनी चाहिए।”
🚶 ज़मीन पर भी सक्रिय — पदयात्रा और चौपालों का सहारा
पार्टी अब जनता के बीच जाकर इस मुद्दे को समझा और भुना रही है:
- राजधानी लखनऊ में संजय सिंह ने विलय किए गए एक स्कूल से दूसरे स्कूल तक करीब दो किलोमीटर की पदयात्रा की।
- विभिन्न जिलों में चौपालें लगाकर स्थानीय लोगों की राय ली जा रही है।
- 2 अगस्त को लखनऊ में एक बड़ा धरना प्रदर्शन आयोजित करने की योजना है, जिसमें हर जिले से प्रभावित अभिभावकों को बुलाने का प्रयास किया जा रहा है।
🏗️ संगठन विस्तार भी ज़ोरों पर
सिर्फ मुद्दा नहीं, AAP संगठन विस्तार पर भी पूरी मेहनत कर रही है:
- जिलों में बैठकों के माध्यम से नए सदस्य बनाए जा रहे हैं
- जोनवार सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं
- बूथ स्तर तक संगठन तैयार करने की रणनीति पर काम चल रहा है
🎯 “सरकारी कलम” का विश्लेषण:
AAP इस बार यूपी पंचायत चुनाव को सिर्फ नाम के लिए नहीं लड़ रही, बल्कि नीतिगत मुद्दों और जनसंवेदनशील विषयों के आधार पर गंभीर तैयारी में लगी है।
स्कूल विलय का विषय ऐसे ग्रामीण इलाकों में गहरी पकड़ बना सकता है, जहां छात्रों को अब 2-3 किमी दूर जाकर स्कूल जाना पड़ रहा है, और अभिभावकों की चिंता स्वाभाविक है।
❓ क्या अन्य पार्टियां इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगी?
- सत्तारूढ़ दल पर दबाव बढ़ सकता है कि वह इस नीति की समीक्षा करे या सफाई दे।
- स्थानीय स्तर पर AAP के उभरने से वोटों का समीकरण बदल सकता है, खासकर ग्राम पंचायत और बीडीसी जैसी सीटों पर।
📝 निष्कर्ष:
“शिक्षा का मुद्दा” केवल कक्षा तक सीमित नहीं, अब चुनावी अखाड़े का हथियार बन चुका है। आम आदमी पार्टी ने इसकी गंभीरता को समझते हुए, रणनीति और सक्रियता दोनों के स्तर पर प्रभावशाली चालें चली हैं।
📌 अब देखना होगा कि जनता इसे कितना गंभीरता से लेती है और बाकी दल कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।
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