☠️ सांसों के साथ शरीर में घुस रहा प्लास्टिक! विएना से आई चौंकाने वाली चेतावनी


☠️ सांसों के साथ शरीर में घुस रहा प्लास्टिक! विएना से आई चौंकाने वाली चेतावनी

विएना/नई दिल्ली।
दही के कप, स्नैक पैकेट और पानी की बोतलों में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक अब सिर्फ पर्यावरण का दुश्मन नहीं, बल्कि मानव शरीर के लिए जैविक खतरा बन चुका है। ऑस्ट्रिया की मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाले अध्ययन में बताया है कि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक अब हमारी सांसों के साथ फेफड़ों में पहुंचकर स्वस्थ कोशिकाओं को कैंसर जैसी बीमारियों की ओर ले जा रहे हैं।

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यह अध्ययन “जर्नल ऑफ हैज़र्डस मैटेरियल्स” में प्रकाशित हुआ है, और यह पहली बार वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित करता है कि माइक्रोप्लास्टिक अब सिर्फ प्रदूषण नहीं, बल्कि एक “Bioactive Threat” यानी जैविक हमला बन चुका है।


🧬 शरीर में कैसे घुस रहा है प्लास्टिक?

  • हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के सूक्ष्म कण सांसों के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं।
  • विशेष रूप से पॉलीस्टायरीन प्लास्टिक जो कि खाद्य पैकेजिंग में प्रचुरता से प्रयोग होता है, वह फेफड़ों की कोशिकाओं को डीएनए क्षति और कैंसर पथों की ओर धकेल रहा है।

🧫 रक्षा प्रणाली भी हो रही विफल

शोध में पाया गया कि जब कोशिकाएं इन सूक्ष्म कणों के संपर्क में आती हैं, तो वे अपने एंटीऑक्सिडेंट सुरक्षा तंत्र को सक्रिय करती हैं।
हालांकि, वैज्ञानिक बुसरा एर्नहोफर के अनुसार:

“यह प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली पर्याप्त नहीं थी। कोशिकाएं तनाव से जूझ रही थीं, लेकिन वह उन्हें घातक जैविक बदलावों से नहीं बचा सकीं।”

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि ये सूक्ष्म कण स्वस्थ कोशिकाओं को अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं, जबकि पहले से प्रभावित (कैंसर) कोशिकाएं अपेक्षाकृत कम प्रभावित हो रही थीं।


⚠️ क्या खतरे हैं इससे?

  • डीएनए में क्षति → Mutation का खतरा
  • ऑक्सीडेटिव तनाव → कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियों की आशंका
  • कोशिका वृद्धि में गड़बड़ी → फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित

🚨 क्या करें आम लोग?

✅ प्लास्टिक पैकिंग वाले खाद्य उत्पादों का कम से कम उपयोग करें
✅ घर में एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें, खासकर शहरों में
✅ धातु या कांच के बर्तन इस्तेमाल करें, खासकर बच्चों के लिए
✅ खाद्य और पेय पदार्थों को प्लास्टिक में गर्म न करें


🗣️ “हमें यह सोचना होगा कि सुविधाजनक प्लास्टिक की कीमत हम अपने फेफड़ों से तो नहीं चुका रहे।”
— पर्यावरण विशेषज्ञ


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