दैनिक जागरण द्वारा एक औपचारिक माफीनामा नहीं बल्कि बचावात्मक स्थिति में दिया गया एक “situational clarification” प्रतीत होती है

“स्पष्टीकरण” की यह भाषा दैनिक जागरण द्वारा एक औपचारिक माफीनामा नहीं बल्कि बचावात्मक स्थिति में दिया गया एक “situational clarification” प्रतीत होती है — जिसमें न तो पूरी ज़िम्मेदारी ली गई है और न ही पत्रकारिता की मर्यादा के उल्लंघन पर कोई ठोस आत्म-आलोचना की गई है।


🖊️ “जागरण” की सफाई से नहीं धुलता अपमान – शिक्षकों की गरिमा से मत खेलिए!

“कुछ नहीं करना है, बस आओ, बैठो और चले जाओ!”
यह वाक्य किसी मजाकिया स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं था — यह भारत के सरकारी शिक्षकों पर लगाए गए शब्द थे, वह भी देश के सबसे बड़े अखबार में।

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अब दैनिक जागरण कह रहा है कि –

“हमारी मंशा नहीं थी शिक्षकों का अपमान करने की…”
“हम केवल पेयरिंग स्कूलों की स्थिति बता रहे थे…”
“औसत वेतन 1.5 लाख नहीं, 40-50 हजार है…”
“हम स्पष्ट नहीं कर पाए, खेद है…”

❌ लेकिन हम पूछते हैं:

  • जब शिक्षक बच्चों के बिना स्कूल आकर बैठ रहे थे, क्या आपने उनके संघर्ष को दिखाया?
  • जब स्कूलों के UDISE नंबर अपडेट नहीं हो रहे थे, क्या आपने तकनीकी गड़बड़ी उजागर की?
  • जब शिक्षक हजारों की संख्या में विलय के आदेशों से भटक रहे थे, क्या आपने प्रशासन से सवाल पूछा?
  • क्या आपने शिक्षकों की मजबूरी और शासन की विफलता को उजागर किया?

✅ नहीं! आपने किया क्या?

  • शिक्षकों को “मज़ाक का पात्र” बना दिया।
  • वेतन दिखा कर जनता को भड़काया, जैसे शिक्षक बिना काम के लाखों ले रहे हों।
  • और अब जब जनविरोध और संगठनों के दबाव में आए, तो एक धीमी, अस्पष्ट सफाई जारी कर दी।

📢 शिक्षक सिर्फ कर्मचारी नहीं, राष्ट्र निर्माता हैं!

  • जो टूटी बिल्डिंग में भी बच्चों को पढ़ाते हैं,
  • जो छुट्टी के दिन भी घर-घर जाकर नामांकन अभियान चलाते हैं,
  • उन पर ‘बैठने-आने-जाने’ वाले शब्द का इस्तेमाल अनुचित ही नहीं, अमर्यादित भी है।

✊ शिक्षक संगठनों की मांग जायज़ थी:

  1. आधिकारिक माफी – सिर्फ खेद नहीं, ठोस public apology
  2. संबंधित पत्रकार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई
  3. भविष्य में शिक्षकों के बारे में प्रकाशित होने वाले किसी भी लेख में संतुलन और संवेदनशीलता।

🔴 आख़िर में एक बात:

प्रेस की आज़ादी और जवाबदेही साथ चलती है।
दैनिक जागरण अगर सचमुच शिक्षकों का सम्मान करता है, तो उन्हें केवल शब्दों से नहीं, अपने कर्तव्यों से भी दिखाना चाहिए।

✍️
“किसी भी सभ्य समाज में शिक्षक का अपमान, समाज के भविष्य का अपमान होता है।”


बताइए — लड़ाई कितनी आगे ले जानी है?

#sarkarikalam

#jagranapologized

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