जस्टिस फॉर स्कूल चिल्ड्रेन” की गूंज, 7 लाख से अधिक ट्वीट्स से उठा सवाल – क्या गांव के बच्चे अब स्कूल के लिए तरसेंगे?


✋ स्कूल मर्जर नहीं, शिक्षा का मज़ाक बन रही है नीति!

“जस्टिस फॉर स्कूल चिल्ड्रेन” की गूंज, 7 लाख से अधिक ट्वीट्स से उठा सवाल – क्या गांव के बच्चे अब स्कूल के लिए तरसेंगे?

📅 तारीख: 7 जुलाई 2025
✍️ लेखक: सरकारी कलम टीम
🌐 www.sarkarikalam.com


🏫 स्कूलों का मर्जर या बच्चों से अन्याय?

प्रदेश में कम नामांकन वाले परिषदीय विद्यालयों के विलय (पेयरिंग) के फैसले को लेकर विरोध तेज हो गया है। 7 जुलाई को उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर शुरू हुआ #JusticeForSchoolChildren अभियान अब एक जन आंदोलन का रूप ले चुका है।

🧑‍🏫 शिक्षक, 👨‍🎓 BTC/DElEd अभ्यर्थी और आम नागरिक – सभी सोशल मीडिया पर एक सुर में सरकार से पूछ रहे हैं:

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❓ क्या गांव के गरीब बच्चे अब पास का स्कूल खो जाने के बाद किलोमीटर दूर स्कूल जाने को मजबूर होंगे?

❓ क्या सरकार शिक्षक की जगह अब ड्राइवर की भर्ती करेगी?

❓ क्या शिक्षा से ज़्यादा आर्थिक बचत ज़रूरी है?


📊 7 लाख से अधिक ट्वीट – सोशल मीडिया पर बवाल!

  • #JusticeForSchoolChildren रविवार को एक्स (Twitter) पर दिनभर ट्रेंड करता रहा।
  • हज़ारों बच्चों के वीडियो और स्कूल की तस्वीरों के साथ शिक्षक समाज ने किया भावनात्मक आह्वान।
  • बच्चों की आंखों में सवाल – “हमें भी पढ़ना है, पापा दूर स्कूल नहीं भेज सकते।”
  • ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी शिक्षकों तक ने साझा किया अपना विरोध।

🎙 शिक्षक संघ बोले – “हर विद्यालय ज़रूरी है”

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा:

“सरकार के इस फैसले से रसोइयों की नौकरी जाएगी, BTC/DElEd अभ्यर्थियों की उम्मीदें टूटेंगी, और बच्चों को घर के पास शिक्षा नहीं मिलेगी।”

उन्होंने स्पष्ट कहा:

“हर कक्षा में एक शिक्षक और हर स्कूल में एक प्रधानाध्यापक होना चाहिए। विद्यालय बंद करने का निर्णय पूरी तरह अनुचित है।”


📍 पदोन्नति ठुकराने वाले शिक्षकों को भी तोड़ रही व्यवस्था

“प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन” ने भी पदोन्नति से इनकार करने वाले शिक्षकों को चयन वेतनमान न दिए जाने पर सवाल उठाए हैं।
संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा:

“यदि कोई शिक्षक पदोन्नति नहीं ले रहा, तो उसे 10 वर्ष की सेवा पर चयन वेतनमान मिलना चाहिए – लेकिन विभाग इसे भी नजरअंदाज कर रहा है।”


🤔 सवाल वही – क्या शिक्षा अब सिर्फ आंकड़ों की योजना बनकर रह गई?

जब तेलंगाना में केवल एक छात्र के लिए भी स्कूल चलाया जा सकता है,
तो फिर उत्तर प्रदेश में 20-30 छात्रों वाले स्कूल क्यों “अर्थव्यवस्था” के नाम पर बंद किए जा रहे हैं?


📌 सरकारी कलम का सवाल सरकार से:

  1. क्या RTE कानून का पालन करके गांव-गांव स्कूल खोले जाने चाहिए या बंद किए जाएं?
  2. क्या अब गांव के बच्चों को शिक्षा छोड़नी पड़ेगी क्योंकि सरकार “स्कूल” की जगह “ट्रांसपोर्ट सुविधा” देने की बात कर रही है?
  3. क्या शिक्षक अब गांव में ब्लैकबोर्ड से ज़्यादा, बसों में बच्चों की गिनती करेंगे?

📢 हमारी मांग साफ है:
👉 कोई भी परिषदीय स्कूल बंद न किया जाए।
👉 हर गांव में शिक्षा हो सुलभ।
👉 शिक्षकों की गरिमा बनी रहे।
👉 बीटीसी और बीएलएड युवाओं को हक मिले।


📍 अगर आप शिक्षक हैं, अभिभावक हैं या छात्र हैं – तो अपनी आवाज़ जरूर उठाएं। शिक्षा बच्चों का अधिकार है, योजना नहीं।

✍️ लेखक: सरकारी कलम टीम
🔗 www.sarkarikalam.com
🔖 #JusticeForSchoolChildren #SchoolMerger #RightToEducation #शिक्षा_का_अधिकार


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