69000 शिक्षक भर्ती: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद एक अंक से वंचित अभ्यर्थी अब भी नियुक्ति के इंतजार में, पूर्व सैनिक की आयु सीमा पार

69000 शिक्षक भर्ती: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद एक अंक से वंचित अभ्यर्थी अब भी नियुक्ति के इंतजार में, पूर्व सैनिक की आयु सीमा पार

📍 लखनऊ | सरकारी कलम विशेष रिपोर्ट

69000 शिक्षक भर्ती में सिर्फ एक नंबर से वंचित रह गए अभ्यर्थियों की लड़ाई अब भी खत्म नहीं हुई है। रविवार को ईको गार्डन, लखनऊ में अभ्यर्थियों ने बैठक कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन की मांग की। अभ्यर्थियों का कहना है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट — दोनों ही न्यायालयों से फैसला उनके पक्ष में आने के बावजूद उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया जा रहा है।


⚖️ क्या है मामला?

  • वर्ष 2019 में आयोजित 69000 सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा में कुछ प्रश्नों के उत्तरों को लेकर विवाद हुआ था।
  • अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और 25 अगस्त 2021 को कोर्ट ने ‘शैक्षिक परिभाषा’ से संबंधित प्रश्न में एक अंक देने का आदेश दिया।
  • राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन 9 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2249 अभ्यर्थियों को एक अतिरिक्त अंक देकर नियुक्ति का पात्र माना।

👨‍🎓 न्याय के बावजूद अन्याय?

बैठक में उपस्थित अभ्यर्थियों ने कहा कि:

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“सरकार दोनों जगह हार चुकी है। फिर भी नियुक्ति पत्र न देना न्यायालय की अवमानना है।”

इन अभ्यर्थियों में सबसे हृदयविदारक स्थिति हरिराम त्रिपाठी की है —

पूर्व सैन्यकर्मी हरिराम अब 62 वर्ष के हो चुके हैं।
उन्हें सुप्रीम कोर्ट से न्याय तो मिला, लेकिन सरकारी टालमटोल की वजह से अब वे आयु सीमा के बाहर हो चुके हैं।


📣 मुख्यमंत्री से लगाई गुहार

अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की कि:

  1. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का तत्काल अनुपालन किया जाए।
  2. सभी 2249 अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी किया जाए।
  3. आयु सीमा पार कर चुके पात्र अभ्यर्थियों को विशेष छूट देकर नियुक्त किया जाए।

सरकार चुप क्यों?

सवाल उठ रहे हैं कि:

  • जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया है, तो फिर तीन साल से सरकार नियुक्ति में देरी क्यों कर रही है?
  • क्या यह कोर्ट के आदेश की अवमानना नहीं है?

📌 निष्कर्ष:

एक अंक से जिंदगी बदल सकती है — या तबाह कर सकती है।
यह मामला सिर्फ परीक्षा या भर्ती का नहीं, बल्कि एक सैनिक, एक युवा, एक अभ्यर्थी के भरोसे का है।

जब कोर्ट ने रास्ता दिखा दिया, तब सरकार का मौन रहना, गंभीर सवाल खड़े करता है।


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✍️ रिपोर्ट: सरकारी कलम टीम


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