🧒🏼📚 पढ़ाई से जुड़ रहे हैं लाखों बच्चे: 5 वर्षों में 22 लाख ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों का हुआ नामांकन


🧒🏼📚 पढ़ाई से जुड़ रहे हैं लाखों बच्चे: 5 वर्षों में 22 लाख ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों का हुआ नामांकन

लखनऊ | जून 2025
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग की मेहनत अब रंग लाने लगी है। बीते पांच वर्षों में 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के 22 लाख से अधिक ‘आउट ऑफ स्कूल’ बच्चों को दोबारा स्कूलों से जोड़ा गया है। यह सफलता प्रदेशव्यापी घर-घर सर्वे, सतत निगरानी और जागरूकता अभियानों के माध्यम से संभव हो पाई है।

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🔍 बाल श्रम और पारिवारिक जिम्मेदारियों से छुड़ा कर मिला स्कूल

इनमें से कई बच्चे ऐसे थे जो बाल श्रम, पारिवारिक जिम्मेदारियों या सामाजिक स्थितियों के कारण शिक्षा से वंचित थे। शिक्षा विभाग ने इन बच्चों को चिन्हित कर न केवल उनका नामांकन कराया बल्कि उन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में भी जोड़ा।

इस मुहिम की शुरुआत हाउसहोल्ड सर्वे के माध्यम से हुई, जिसमें स्कूल न जाने वाले बच्चों की वास्तविक स्थिति का आंकलन किया गया। इसके बाद शिक्षकों, समन्वयकों और स्थानीय निकायों की सहायता से व्यक्तिगत प्रयास किए गए।


📊 पिछले 5 वर्षों में नामांकित ‘आउट ऑफ स्कूल’ और बाल श्रमिक बच्चों के आंकड़े:


ड्रॉपआउट रोकने के लिए अपनाए गए नवाचार:

बेसिक शिक्षा विभाग ने वर्ष 2024-25 से ड्रॉपआउट दर कम करने के लिए कई व्यवस्थित और व्यावहारिक पहलें शुरू की हैं:

  • 👥 ‘बुलावा टोली’ का गठन: यदि कोई बच्चा लगातार 3 दिन तक स्कूल नहीं आता, तो बुलावा टोली उसके घर जाकर संपर्क करती है।
  • 🏫 प्रधानाचार्य की भूमिका: 6 दिन से अधिक गैरहाजिरी पर स्कूल के प्रधानाचार्य स्वयं छात्र के घर जाते हैं।
  • 👨‍👩‍👧‍👦 माता-पिता की काउंसिलिंग: यदि बच्चा 15 दिन तक अनुपस्थित रहता है, तो माता-पिता की काउंसिलिंग की जाती है।
  • 📘 ब्रिज कोर्स (विशेष प्रशिक्षण): यदि बच्चा 30 दिनों तक लगातार अनुपस्थित रहता है, तो उसे ड्रॉपआउट मानते हुए ब्रिज कोर्स के तहत लाया जाएगा।

🎯 शिक्षा का अधिकार और मिशन निपुण भारत को मिल रहा है बल

बेसिक शिक्षा विभाग का यह अभियान न केवल “शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE)” को मजबूती दे रहा है, बल्कि “निपुण भारत मिशन” की दिशा में भी बड़ा कदम है। इससे बच्चों की नियमित उपस्थिति, सीखने के स्तर में सुधार और विद्यालयों में सहभागिता को प्रोत्साहन मिल रहा है।


📌 निष्कर्ष:

बेसिक शिक्षा विभाग का यह प्रयास सिर्फ स्कूलों में नामांकन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार को वास्तविक रूप में लागू करने की दिशा में एक ठोस कदम है। समाज और सरकार के संयुक्त प्रयास से आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश पूर्ण नामांकन और न्यूनतम ड्रॉपआउट वाले राज्य के रूप में पहचान बना सकता है।


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