पॉक्सो एक्ट प्यार का दुश्मन नहीं, किशोरों का रक्षक है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
प्रयागराज।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के दुरुपयोग को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कानून किशोरावस्था में उपजे प्रेम के खिलाफ नहीं, बल्कि नाबालिगों की सुरक्षा के लिए बना है। अदालत ने स्पष्ट किया कि न तो वह पीड़िता के बयान को नजरअंदाज कर सकती है, और न ही आरोपी को अनावश्यक रूप से जेल में सड़ने के लिए छोड़ा जा सकता है।
पॉक्सो का मूल उद्देश्य नहीं है किशोरों के बीच प्रेम संबंधों को अपराध बनाना
न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की अदालत ने चंदौली जिले के एक मामले में युवक को जमानत प्रदान करते हुए टिप्पणी की कि:
“आजकल पॉक्सो एक्ट का उपयोग सहमति से बने किशोर संबंधों को अपराध साबित करने के लिए किया जा रहा है, जो चिंताजनक है।”
मामला: प्रेम प्रसंग को बना दिया गया अपराध
- मामला चकिया थाना क्षेत्र का है, जहाँ 15 फरवरी को एक नाबालिग लड़की के पिता ने युवक पर बहला-फुसलाकर भगाने और जेवर चोरी का आरोप लगाया।
- युवक के साथ-साथ उसके माता-पिता, भाई और बहन को भी नामजद किया गया।
- पुलिस ने युवक को पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर 7 मार्च को जेल भेज दिया।
युवक की दलील: प्यार सहमति से हुआ था
- आरोपी के वकील ने अदालत में कहा कि एफआईआर में 15 दिन की देरी है और लड़की की मेडिकल जांच नहीं कराई गई।
- पीड़िता ने युवक के साथ स्वेच्छा से संबंध बनाए और दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं।
- कोर्ट ने माना कि मामला प्रेम प्रसंग का लगता है, ना कि बलात्कार या यौन शोषण का।
हाईकोर्ट का संदेश: पुलिस को करनी चाहिए विवेकपूर्ण जांच
अदालत ने कहा:
“कई बार किशोरावस्था में नासमझी में बने संबंधों को अपराध बना दिया जाता है, जिससे दोनों पक्षों का जीवन प्रभावित होता है। पुलिस को एकतरफा कार्रवाई करने की बजाय मामले को संवेदनशीलता से देखने की जरूरत है।”
निष्कर्ष
यह फैसला न केवल पॉक्सो एक्ट के सही प्रयोग की ओर ध्यान खींचता है, बल्कि यह भी बताता है कि प्रेम और अपराध में फर्क करना कितना जरूरी है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि न्याय सिर्फ सजा देना नहीं, बल्कि समझदारी से फैसले लेना भी है।
लेखक: Sarkari Kalam ब्यूरो
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