इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति शून्य घोषित


इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति शून्य घोषित ✍️

अब माध्यमिक स्कूलों में मनमानी नियुक्ति नहीं चलेगी!

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि इंटरमीडिएट शिक्षा नियमों का उल्लंघन कर की गई नियुक्ति पूर्णतः शून्य मानी जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि तदर्थवाद (Adhocism) अब शिक्षा व्यवस्था में जगह नहीं पा सकता।

1999 के बाद से बदल चुका है नियुक्ति का अधिकार

कोर्ट ने यह भी दोहराया कि 25 जनवरी 1999 के बाद से माध्यमिक स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति का अधिकार माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड (UPSESSB) को सौंप दिया गया है।
अब प्रबंध समिति (Management Committee) को किसी भी अल्पकालिक रिक्त पद (Short Term Vacancy) पर तदर्थ शिक्षक नियुक्त करने का अधिकार नहीं है।

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की-वर्ड्स: इलाहाबाद हाईकोर्ट, तदर्थ शिक्षक, नियुक्ति शून्य, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, 1999 आदेश, अध्यापक भर्ती नियम।


तदर्थ नियुक्ति को नियमित करने का कोई प्रावधान नहीं

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रबंध समिति द्वारा नियुक्त तदर्थ अध्यापक को वेतन देने का भी सरकार पर कोई कानूनी दायित्व नहीं बनता।
याची राजकुमारी की ओर से दायर याचिका पर पहले एकलपीठ ने 16 मई 2024 को उसे नियमित कर वेतन भुगतान का आदेश दिया था।
लेकिन, खंडपीठ (न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र व न्यायमूर्ति पीके गिरी) ने राज्य सरकार की विशेष अपील स्वीकार करते हुए, यह आदेश रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने याची को यह विकल्प दिया कि वह चाहे तो प्रबंध समिति से स्वयं वेतन की मांग कर सकती है, लेकिन सरकार को वेतन देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।


क्या है पूरा मामला? जानिए विस्तार से

अलीगढ़ स्थित बिशारा इंटर कॉलेज में 2005 में एक अध्यापक के पद पर रिक्ति उत्पन्न हुई थी।
चयन बोर्ड से अनुमति न लेते हुए, प्रबंध समिति ने 9 मई 2005 को राजकुमारी को तदर्थ अध्यापक के रूप में नियुक्त कर लिया।
इसके बाद याची ने 5 फरवरी 2024 को स्वयं को नियमित करने के लिए आवेदन दिया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
निराश होकर याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
एकलपीठ ने उसे राहत दी, लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपील दाखिल कर दी थी।

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि:

  • प्रबंध समिति को नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं था।
  • रिक्त पद केवल चयन बोर्ड के माध्यम से ही भरे जाने थे।
  • सरकार ने तदर्थवाद समाप्त करने के लिए स्पष्ट नियम बना रखे हैं।
  • इस तरह की तदर्थ नियुक्ति विधि विरुद्ध (Illegal) है।

कोर्ट ने सरकार के सभी तर्कों को सही मानते हुए, याची की नियुक्ति को अमान्य करार दे दिया।


इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा?

यह निर्णय शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और नियमबद्ध प्रक्रिया को बढ़ावा देगा।
अब बिना चयन बोर्ड के अनुमोदन के किसी भी प्रकार की तदर्थ नियुक्ति अवैध मानी जाएगी।
छात्रों को भी इससे योग्य और चयनित अध्यापक ही मिल पाएंगे, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।


निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल कानून का सम्मान सुनिश्चित करता है बल्कि यह शिक्षा क्षेत्र में तदर्थवाद की परंपरा पर भी पूरी तरह से लगाम लगाने का काम करेगा।
सरकारी नियमों का पालन करना ही अब एकमात्र रास्ता है!


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