पतियों की बढ़ती आत्महत्याओं पर राज्य महिला आयोग अध्यक्ष की चिंता: परिवार के संस्कारों को बताया जिम्मेदार


पतियों की बढ़ती आत्महत्याओं पर राज्य महिला आयोग अध्यक्ष की चिंता: परिवार के संस्कारों को बताया जिम्मेदार

प्रयागराज, 27 अप्रैल 2025:
हाल के दिनों में पतियों की आत्महत्या की घटनाओं में आई तेजी ने समाज को चौंका दिया है। न केवल पुरुष बल्कि महिलाएं भी इस बढ़ती घटनाओं को लेकर असमंजस में हैं। इसी मुद्दे पर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान ने अपनी चिंता जाहिर की है और परिवारों को आत्ममंथन करने की सलाह दी है।

बबीता चौहान का मानना है कि पुरुष आयोग बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि महिलाएं और उनके परिवार — विशेष रूप से माताएँ — अपनी बेटियों के वैवाहिक जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप बंद कर दें, तो अधिकांश समस्याएँ स्वतः समाप्त हो सकती हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि संस्कारों में आई कमी और अत्यधिक हस्तक्षेप इन दुखद घटनाओं के मूल कारण हैं।

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परिवार और संस्कारों की भूमिका महत्वपूर्ण

अमर उजाला से विशेष बातचीत में चौहान ने कहा कि पतियों की आत्महत्या के पीछे मुख्यतः परिवार के संस्कार जिम्मेदार हैं। जब एक लड़की को बचपन से ही यह सिखाया जाए कि ससुराल में तालमेल कैसे बैठाना है और समस्याओं का समाधान कैसे ढूंढना है, तो वैवाहिक जीवन में संतुलन बना रहता है। मगर वर्तमान समय में बेटियों को संघर्ष और अधिकारों की शिक्षा अधिक दी जा रही है, जबकि समन्वय और धैर्य का पाठ कमजोर पड़ता जा रहा है।

सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव भी बना कारण

राज्य महिला आयोग अध्यक्ष ने सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को भी इन घटनाओं का एक कारण बताया। आज की पीढ़ी अपने निजी जीवन को सोशल मीडिया पर साझा कर रही है, जिससे छोटी-छोटी बातें भी सार्वजनिक बहस का मुद्दा बन जाती हैं और रिश्तों में अविश्वास व तनाव गहराता है।

नौकरीपेशा दंपतियों में बढ़ रहा तनाव

बबीता चौहान ने कहा कि जब पति-पत्नी दोनों कार्यरत होते हैं, तो कार्यस्थल की व्यस्तता, थकान और समय की कमी के कारण आपसी संवाद कम हो जाता है। यह स्थिति धीरे-धीरे तनाव, अवसाद और मनमुटाव में बदल जाती है, जो कई बार गंभीर परिणामों तक पहुँचती है।


निष्कर्ष

बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। केवल कानून बनाने या आयोग गठित करने से समस्या का समाधान संभव नहीं। समाज को अपने संस्कारों और पारिवारिक मूल्यों की ओर लौटने की जरूरत है। बेहतर संवाद, समझदारी और सम्मान से रिश्तों को मजबूत बनाया जा सकता है।

समाज की बेहतरी के लिए जरूरी है कि हम समस्या की जड़ को समझें, न कि केवल लक्षणों का उपचार करें।


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