कर्मचारियों का अस्तित्व बढ़ते निजीकरण से खतरे में – राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद का अधिवेशन

कर्मचारियों का अस्तित्व बढ़ते निजीकरण से खतरे में – राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद का अधिवेशन

लखनऊ: राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के द्विवार्षिक अधिवेशन में रविवार को सरकारी विभागों और संस्थानों में तेजी से बढ़ते निजीकरण को लेकर गहरी चिंता जताई गई। वक्ताओं ने कहा कि इस नीति से सरकारी कर्मचारियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।

अधिवेशन में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया कि अब भर्तियां आउटसोर्सिंग के माध्यम से हो रही हैं। आयोग द्वारा कुछ पदों पर चयन तो होता है, परंतु उतने ही कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जाते हैं, जिससे शासकीय सेवाओं पर संकट बढ़ता जा रहा है।

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75% कर्मचारी आउटसोर्स, शेष संविदा पर

बीपी मिश्र, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए बताया कि “सरकारी विभागों में 75 प्रतिशत कर्मचारी आउटसोर्सिंग के जरिए काम कर रहे हैं, जबकि बाकी संविदा कर्मियों को बहुत ही कम पारिश्रमिक दिया जाता है।”

देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी

छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष अनिल शुक्ला और ओपी शर्मा ने कहा कि यदि केंद्र सरकार निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ती रही तो देशभर के कर्मचारियों को एकजुट होकर आंदोलन करना होगा। उनका सुझाव था कि एक समान वेतन, भर्ती प्रक्रिया और सुविधाएं पूरे देश में लागू की जाएं।

जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष शाह फैजल ने भी कहा कि केंद्र का आठवां वेतन आयोग 1 जनवरी 2026 से लागू किया जाना चाहिए और कर्मचारियों की सेवा शर्तों में सुधार किया जाए।

नई कार्यकारिणी का हुआ गठन

अधिवेशन में नई कार्यकारिणी का चुनाव भी संपन्न हुआ। सुरेश यादव अध्यक्ष, गिरिराज त्रिपाठी वरिष्ठ उपाध्यक्ष, महामंत्री मणि मिश्रा, संपर्क सचिव राजेंद्र उपाध्याय समेत अन्य पदाधिकारियों को सर्वसम्मति से चुना गया।

संवाददाता रिपोर्ट, लखनऊ

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