डीएनए डाटा साइबर हमलों के निशाने पर: वैज्ञानिकों की चेतावनी
नई दिल्ली – अब डीएनए डाटा भी साइबर हमलों का शिकार हो सकता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर डीएनए डाटा को सही ढंग से सुरक्षित नहीं किया गया, तो हैकर्स इसे चुराकर कई खतरनाक उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि निगरानी, जैविक हमले या वायरस और बीमारियों को फैलाना। यह शोध ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ की डॉ. नासरीन अंजुम की अगुवाई में किया गया, और इसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका आईईईई एक्सेस में प्रकाशित किया गया है।
डीएनए डाटा का खतरा
- नेक्स्ट जेनरेशन डीएनए सीक्वेंसिंग (एनजीएस) तकनीक से जुड़े साइबर-बायोसिक्योरिटी खतरों का यह अब तक का सबसे व्यापक विश्लेषण है।
- जैविक हमले: यदि डीएनए डाटा चोरी हो जाता है, तो हैकर्स इसे व्यक्तिगत स्वास्थ्य कमजोरियों का फायदा उठाने, जैविक हथियार बनाने, और जीन एडिटिंग के जरिए खतरनाक वायरस उत्पन्न करने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
- इसके साथ ही, डाटा चोरी से बायोटेररिज्म (जैविक आतंकवाद) का खतरा भी बढ़ सकता है, जिससे रोग फैलाए जा सकते हैं।
सुरक्षा में सेंध की संभावना
- बायोटेक्नोलॉजी कंपनियों, मेडिकल संस्थानों के डाटा केंद्रों, क्लाउड स्टोरेज और डीएनए टेस्ट किट के कंप्यूटरों में मौजूद आंकड़े और व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड हैकर्स के लिए आसान निशाना हो सकते हैं।
- एआई की मदद से जीन डाटा में छेड़छाड़ की जा सकती है, जिससे व्यक्ति की पहचान ट्रेस करना भी आसान हो सकता है।
सुरक्षा उपायों की आवश्यकता
डॉ. अंजुम का कहना है कि डीएनए डाटा सुरक्षा सिर्फ एनक्रिप्शन (गुप्त कोडिंग) से संभव नहीं है। इस पर गंभीर खतरे से बचने के लिए निम्नलिखित सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है:
- सुरक्षित सीक्वेंसिंग प्रोटोकॉल
- एन्क्रिप्टेड स्टोरेज सिस्टम
- एआई आधारित सुरक्षा निगरानी
यह शोध जीनोमिक डाटा को सुरक्षित रखने के महत्व को उजागर करता है, क्योंकि इसका दुरुपयोग केवल व्यक्तिगत पहचान और स्वास्थ्य से संबंधित नहीं, बल्कि वैज्ञानिक शोध और देश की जैविक सुरक्षा पर भी प्रभाव डाल सकता है।
आखिरी शब्द: डॉ. अंजुम का कहना है कि यह अध्ययन एक चेतावनी है और हमें भविष्य में आने वाले खतरों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। डीएनए डाटा की सुरक्षा पर ध्यान देने से हम इस तरह के खतरों से बच सकते हैं।