बिना आधार वाले बच्चों के सामने शिक्षा का संकट: स्कूलों ने किया दाखिले से इनकार
लखनऊ के सरकारी स्कूलों में बिना आधार कार्ड वाले बच्चों के दाखिले पर रोक लगाई जा रही है। मजदूर परिवारों के बच्चों को इस नियम का सामना करना पड़ रहा है, जिससे शिक्षा का अधिकार खतरे में है।
शिक्षा से वंचित होते नन्हे सपने: आधार नहीं तो दाखिला नहीं!
लखनऊ:
नया शैक्षिक सत्र शुरू होते ही राजधानी के 1619 प्राइमरी स्कूलों में एक नई चुनौती सामने आई है—बिना आधार कार्ड वाले बच्चों का दाखिला नहीं हो रहा है।
तीन दिनों में करीब 200 बच्चे ऐसे स्कूलों में पहुंचे जिनके पास आधार नहीं था, लेकिन प्रवेश नहीं मिल सका। शिक्षक सिर्फ उन्हें स्कूल में बैठने की अस्थायी अनुमति दे रहे हैं, वो भी 15 दिन में आधार लाने की शर्त पर।
क्यों नहीं हो पा रहा आधार?
इन बच्चों में अधिकांश बाहरी जिलों और राज्यों से आए प्रवासी मजदूरों के बच्चे हैं। इनके पास निवास प्रमाण पत्र और जन्म प्रमाण पत्र नहीं है, जिससे आधार बनाना संभव नहीं हो पा रहा।
- पार्षद और ग्राम प्रधान भी लिखकर नहीं दे रहे प्रमाण पत्र।
- स्थायी पता न होने की वजह से आधार पंजीकरण में अड़चन।
- पूर्व में शपथ पत्र से आधार बनता था, अब जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य।
यू-डायस और सरकारी योजनाओं से बाहर
बिना आधार के छात्रों को:
- अपार आईडी नहीं मिलती, जिससे उनका रिकॉर्ड अपलोड नहीं हो सकता।
- यू-डायस डेटा में एंट्री नहीं होती।
- डीबीटी (Direct Benefit Transfer) के तहत यूनिफॉर्म और अन्य लाभ नहीं मिलते।
पिछले वर्ष 15,000 बच्चों को यही नुकसान हुआ था।
शिक्षकों में नाराजगी क्यों?
फरवरी 2025 में जब कई छात्रों की अपार आईडी नहीं बन पाई, तो BSA ने शिक्षकों का वेतन रोक दिया।
इससे शिक्षकों में आक्रोश है और अब वे बिना आधार वाले छात्रों का दाखिला लेने से साफ मना कर रहे हैं।
“अगर बच्चे का आधार नहीं है तो हम अपार ID कैसे बनाएंगे? हमारी सैलरी फिर से क्यों रोकी जाए?” – एक शिक्षक की व्यथा।
क्या कह रहे हैं अधिकारी?
श्याम किशोर तिवारी (एडी बेसिक, लखनऊ मण्डल) ने बताया:
“हर BRC पर 6 से 14 वर्ष के बच्चों के आधार बनवाने की सुविधा उपलब्ध है। प्रधानाध्यापक अभिभावकों की मदद से आधार बनवा रहे हैं।”
लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि बिना दस्तावेज़ के आधार बन ही नहीं पा रहा।
समाधान क्या है?
विनय कुमार सिंह, प्रांतीय अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन यूपी का सुझाव:
“जैसे पहले शपथ पत्र से आधार बन जाता था, वैसे ही प्रक्रिया को फिर से आसान बनाया जाए।”
निष्कर्ष:
“आधार नहीं तो शिक्षा नहीं” जैसी नीति उन बच्चों के सपनों को तोड़ रही है, जिनका भविष्य पहले से ही असुरक्षित है। क्या हम एक कार्ड के कारण किसी बच्चे को स्कूल से वंचित कर सकते हैं?
अब समय है कि सरकार, स्कूल प्रशासन और समाज मिलकर इस बाधा का हल निकालें—ताकि हर बच्चा शिक्षा का अधिकार पा सके।
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