इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलग-अलग मामलों में महत्वपूर्ण टिप्पणियां करते हुए कानून की मंशा को स्पष्ट किया है। न्यायालय ने भरण-पोषण, मृतक आश्रित नियुक्ति और आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़े मामलों में अहम निर्णय दिए हैं।
⚖️ अच्छी कमाई करने वाली पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पति से अलग रहकर अच्छी कमाई करने वाली पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की अदालत ने गौतमबुद्ध नगर के परिवार न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पति को पत्नी को 5,000 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
पति ने पुनरीक्षण याचिका में दलील दी थी कि परिवार न्यायालय का आदेश पत्नी की गलत वयानी पर आधारित है। पत्नी ने खुद को बेरोजगार बताया था, जबकि वह उच्च शिक्षित और कार्यरत महिला है। सुनवाई के दौरान सामने आया कि पत्नी ने ट्रायल कोर्ट में जिरह के दौरान 36,000 रुपये प्रतिमाह की आय स्वीकार की है और उस पर कोई अन्य पारिवारिक जिम्मेदारी भी नहीं है।
इसके विपरीत पति पर वृद्ध माता-पिता की सामाजिक जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि कानून के अनुसार वही पत्नी भरण-पोषण की हकदार हो सकती है, जिसके पास जीवनयापन का कोई साधन न हो। अदालत को गुमराह करने का प्रयास करने वाली महिला राहत की पात्र नहीं है।
🏛️ मृतक आश्रित को नौकरी से इन्कार मनमाना: हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि परिवार की आर्थिक स्थिति की अनदेखी कर केवल तकनीकी आधार पर मृतक आश्रित की नियुक्ति से इन्कार करना मनमाना है और कानून की मंशा के विपरीत है।
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की अदालत ने फर्रुखाबाद निवासी दीपक कुमार की याचिका स्वीकार करते हुए नगर पालिका परिषद फर्रुखाबाद के अधिशासी अधिकारी को तीन सप्ताह में नियुक्ति पर पुनर्विचार कर नया निर्णय लेने का आदेश दिया।
याची के पिता नगर पालिका परिषद में सफाई कर्मचारी थे, जिनका 2023 में बीमारी के कारण निधन हो गया था। पिता की सेवा अवधि में मां भी सफाई कर्मचारी थीं, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों और दबाव के चलते उन्होंने 31 मई 2024 को इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति के लिए दी गई अर्जी यह कहकर खारिज कर दी गई कि मां सरकारी सेवक थीं।
कोर्ट ने रिकॉर्ड के आधार पर पाया कि मां को मजबूरी में इस्तीफा देना पड़ा, जिससे परिवार आर्थिक संकट में आ गया। ऐसे में नियुक्ति से इन्कार का आदेश निरस्त कर दिया गया।
📱 नबी पैगंबर पर आपत्तिजनक पोस्ट का मुकदमा रद्द करने से इनकार
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फेसबुक पर नबी पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी के आरोप में दर्ज मुकदमा रद्द करने से इन्कार कर दिया है।
न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की अदालत ने सोनभद्र निवासी मनीष तिवारी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पोस्ट की सामग्री प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण प्रतीत होती है। इसलिए अदालत ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समन जारी करने के स्तर पर यह नहीं देखा जाता कि दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं या नहीं, बल्कि यह देखा जाता है कि क्या प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इस प्रारंभिक चरण में आरोपी के बचाव का गहन परीक्षण अपेक्षित नहीं है।
🖊️ सरकारी कलम न्यायपालिका से जुड़े ऐसे ही महत्वपूर्ण और जनहित से जुड़े फैसलों को सरल और तथ्यात्मक रूप में आपके सामने लाता रहेगा।
