तिरुपुर अदालत का कड़ा फैसला: दलित महिला रसोइया के साथ भेदभाव करने वाले 6 लोगों को दो साल की सजा
✍️ सरकारी कलम | न्याय और समानता की आवाज
तमिलनाडु के तिरुपुर जिले से एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सामने आया है। यहां की स्पेशल एससी/एसटी कोर्ट ने जातिगत भेदभाव के एक गंभीर मामले में छह लोगों को दो साल की सजा सुनाई है। यह मामला न सिर्फ कानून की जीत है बल्कि समाज में बराबरी और मानव गरिमा के संदेश को भी मजबूती से दोहराता है।
✦ मामला क्या था?
साल 2018 में तिरुपुर के थिरुमलाई गौंडमपलायम स्थित गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल में दलित महिला रसोइया पी. पप्पल (44 वर्ष) मिड-डे मील तैयार करती थीं।
लेकिन इसी दौरान छह अभिभावकों ने उनकी जाति के आधार पर बच्चों के लिए खाना बनाने पर आपत्ति जताई।
ये छह लोग—
पी. पलानीसामी गौंडर, एन. शक्तिवेल, आर. शनमुगम, सी. वेलिंगिरी, ए. दुरईसामी और वी. सीता लक्ष्मी—
रसोइया को काम करने से रोकने की कोशिश करते रहे।
यह सीधा-सीधा जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता का मामला था जिसे अदालत ने बहुत गंभीरता से लिया।
✦ मामला पहुंचा कोर्ट तक
लोक अभियोजक के अनुसार, मामले की सुनवाई एससी/एसटी एक्ट की विशेष अदालत में हुई।
अदालत ने सभी सबूतों और गवाहियों को सुनने के बाद दोषियों को caste-based discrimination के तहत दो साल की सजा सुनाई।
✦ विरोध और न्याय की मांग
घटना के बाद तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन फ्रंट के सदस्यों ने
- दलित महिला रसोइया के साथ हुए भेदभाव
- और उनके बाद हुए ट्रांसफर
के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था।
उनकी लगातार आवाज़ और कानूनी कार्रवाई के बाद ही यह मामला सही दिशा में आगे बढ़ पाया।
✦ क्यों है ये फैसला महत्वपूर्ण?
✔️ जातिगत भेदभाव जैसे अपराधों पर सख्त संदेश
✔️ सरकारी संस्थानों में बराबरी और सम्मान सुनिश्चित
✔️ दलित और वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा
✔️ समाज को यह सीख कि भेदभाव किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं
न्यायालय का यह फैसला बताता है कि
👉 “अस्पृश्यता और जातिगत पूर्वाग्रह आधुनिक भारत में किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किए जाएंगे।”
✦ सरकारी कलम की राय ✍️
हमारे समाज में जब तक इस तरह की मानसिकताएं मौजूद हैं, तब तक ऐसी सख्त सजा बेहद ज़रूरी है।
एक महिला, वह भी सरकारी स्कूल की रसोइया, सिर्फ अपनी जाति की वजह से अपमान और भेदभाव झेले—
यह किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं।
न्याय का यह फैसला न केवल पी. पप्पल के सम्मान को बहाल करता है बल्कि देश भर में समानता की लड़ाई लड़ने वालों को भी मजबूती देता है।
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