दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की तलाक याचिका को सही ठहराया — बेबुनियाद बेवफाई के आरोप को वैवाहिक क्रूरता माना

दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की तलाक याचिका को सही ठहराया ⚖️💔

| नई दिल्ली 🏛️

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि जीवनसाथी पर बिना आधार बेवफाई का आरोप लगाना गंभीर मानसिक उत्पीड़न और अपमान के दायरे में आता है — और इसे वैवाहिक क्रूरता माना जा सकता है। इस टिप्पणी के साथ जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने पारिवारिक अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें पति को क्रूरता के आधार पर तलाक दिया गया था। 🔍

WhatsApp Channel Join Now
WhatsApp Group Join Now
Telegram Channel Join Now

मामले का सार — एक नज़र में 🧾

पति-पत्नी की शादी 1997 में हुई थी, लेकिन दोनों 2012 से अलग रह रहे थे। पति ने 2013 में तलाक की अर्जी दी और आरोप लगाया कि पत्नी ने उस पर बेबुनियाद बेवफाई के आरोप लगाए, उसे अपमानित किया और घर से निकाल दिया। वहीं पत्नी ने पति पर दहेज की मांग और अवैध संबंधों के आरोप लगाए। ⚖️

कोर्ट ने क्या देखा?

अदालत ने पाया कि पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें और मानहानि के मुकदमे दायर किए — जो स्पष्ट रूप से दुश्मनी और द्वेष की भावना दर्शाते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब रिश्ता इतना विषैला हो जाए कि मेल-मिलाप की कोई गुंजाइश न बचे, तो तलाक ही एकमात्र रास्ता बचता है। ✂️

“इतना विषैला हो जाए रिश्ता तो…”

इस आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को सही ठहराया और पति की अपील खारिज कर दी। 🏛️

अन्य महत्वपू्र्ण तथ्य

  • त timelines: शादी — 1997; अलगाव आरंभ — 2012; पति की तलाक याचिका — 2013।
  • दावें: पति — बेबुनियाद बेवफाई के आरोप, अपमान व निकाला जाना; पत्नी — दहेज मांग और अवैध संबंधों के आरोप।
  • कोर्ट की रोकथाम: वैवाहिक रिश्ते में किसी भी प्रकार की शारीरिक हिंसा पूरी तरह अस्वीकार्य है, चाहे वह पति द्वारा हो या पत्नी द्वारा।

कानूनी और सामाजिक निहितार्थ

यह फैसला घरेलू मामले में मानसिक उत्पीड़न, अपमान और बेबुनियाद आरोपों को गंभीरता से लेने का संकेत देता है। जब वैवाहिक जीवन में आरोप-प्रत्यारोप और कानूनी लड़ाईयाँ इतनी गहरी हो जाती हैं कि समझौते की गुंजाइश न रहे, तो न्यायालयों द्वारा तलाक को एक यथार्थवादी विकल्प माना जा सकता है। यह निर्णय वैवाहिक संघर्षों में न्यायिक संतुलन और संबंधों की सुरक्षा दोनों पर रोशनी डालता है — साथ ही यह भी याद दिलाता है कि झूठे या बिना आधार के आरोप किसी के जीवन पर गहरा असर डाल सकते हैं। 🔎

निष्कर्ष

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला निजी संबंधों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की अहमियत को रेखांकित करता है। जहाँ आरोप सिद्ध हों — या जिनसे वैवाहिक जीवन विषैला बन जाए — न्यायालयों के पास ऐसे मामलों में हस्तक्षेप और तलाक का आदेश देने का अधिकार है। यह फैसला उस संदेश को भी पोषित करता है कि बेबुनियाद आरोप लगाना सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, कानूनी परिणाम भी ला सकता है। ⚖️

✍️ लेख तैयार:

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top