📰 देश के 1 लाख से ज्यादा स्कूल “वन टीचर स्कूल” बने — 33 लाख से ज्यादा बच्चे एक ही शिक्षक पर निर्भर!
✍️ लेखक: सरकारी कलम टीम
🎓 शिक्षा व्यवस्था पर सवाल — जब पूरा स्कूल एक ही शिक्षक चला रहा हो!
भारत जैसे विशाल देश में शिक्षा को “मूल अधिकार” घोषित किए जाने के बावजूद एक कड़वी सच्चाई सामने आई है — देश के 1,04,125 स्कूल आज भी ऐसे हैं, जहां पूरा स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहा है।
शिक्षा मंत्रालय की 2024–25 की रिपोर्ट बताती है कि इन स्कूलों में करीब 33.76 लाख बच्चे पढ़ रहे हैं — यानी हर शिक्षक औसतन 34 छात्रों का अकेले बोझ उठा रहा है।
🧮 प्रदेशवार स्थिति — आंध्र प्रदेश सबसे आगे, यूपी दूसरे स्थान पर

📍 दिल्ली में मात्र 9 ऐसे स्कूल हैं, जबकि लद्दाख, पुड्डुचेरी, दादरा नगर हवेली, दमन-दीव और चंडीगढ़ में अब एक भी “वन टीचर स्कूल” नहीं बचा है।
🔻 पिछले दो वर्षों में 6% की कमी, लेकिन समस्या कायम
2022–23 में देश में ऐसे 1,18,190 स्कूल थे, जो 2023–24 में घटकर 1,10,971 रह गए और अब 2024–25 में 1,04,125 पर आ गए हैं।
➡️ यानी सुधार की कोशिशें जारी हैं, लेकिन गति धीमी है और ग्राम्य भारत में हालात चिंताजनक हैं।
🏫 स्कूलों के विलय का अभियान
सरकार अब “स्कूल समेकन अभियान” (School Consolidation Drive) चला रही है।
इसके तहत —
- जिन स्कूलों में छात्र नहीं हैं, वहां के शिक्षकों को एक-शिक्षक स्कूलों में भेजा जा रहा है।
- संसाधनों का बेहतर उपयोग और शिक्षक-छात्र अनुपात संतुलित करने पर जोर है।
📘 कानून क्या कहता है?
RTE (Right to Education) Act, 2009 के अनुसार —
- प्राथमिक स्कूल (कक्षा 1–5): प्रति 30 छात्र पर 1 शिक्षक होना चाहिए।
- उच्च प्राथमिक स्कूल (कक्षा 6–8): प्रति 35 छात्र पर 1 शिक्षक होना चाहिए।
लेकिन यह मानक अभी भी कई राज्यों में लागू नहीं हो पाया है। हजारों बच्चों की पढ़ाई एक ही शिक्षक की क्षमता से बंधी हुई है।
📊 यूपी में छात्र नामांकन के लिहाज से शीर्ष पर
उत्तर प्रदेश ऐसे स्कूलों में छात्र संख्या के मामले में सबसे आगे है —
- यूपी: 6.24 लाख छात्र
- झारखंड: 4.36 लाख छात्र
- पश्चिम बंगाल: 2.35 लाख छात्र
- मध्य प्रदेश: 2.29 लाख छात्र
- कर्नाटक: 2.23 लाख छात्र
- आंध्र प्रदेश: 1.97 लाख छात्र
- राजस्थान: 1.72 लाख छात्र
🗣️ सरकारी कलम की राय
देश की शिक्षा व्यवस्था की असली तस्वीर गाँवों में दिखाई देती है, जहाँ एक शिक्षक पूरी स्कूल व्यवस्था का भार उठाए हुए है — हाजिरी से लेकर मिड-डे मील, रजिस्टर, निरीक्षण और पढ़ाई तक।
सरकार भले सुधार की दिशा में काम कर रही हो, लेकिन नीतियों से ज़्यादा ज़रूरत जमीनी नियुक्तियों की है।
अगर हर स्कूल में पर्याप्त शिक्षक नहीं होंगे, तो नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का सपना अधूरा ही रहेगा।
📢 सरकारी कलम की अपील:
“एक शिक्षक, एक स्कूल” नहीं — बल्कि “हर कक्षा, हर विषय पर शिक्षक” होना चाहिए।
बच्चों का भविष्य सिर्फ आंकड़ों में नहीं, शिक्षकों की उपलब्धता में बसता है।
🗞️ सरकारी कलम — जहां हर शिक्षक की आवाज़ सुनी जाती है!
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