⚖️ इलाहाबाद हाईकोर्ट के अहम फैसले: अनुकंपा नियुक्ति, हत्या केस, फ्लैट तोड़ने और चेक बाउंस मामले पर बड़ा आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते दिनों कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं, जिनका असर न सिर्फ संबंधित पक्षों पर पड़ेगा बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के मानक भी स्पष्ट होंगे। आइए जानते हैं विस्तार से 👇
🏦 अनुकंपा नियुक्ति पर SBI को 1 लाख हर्जाना
- बांदा के प्रिंसू सिंह ने याचिका दाखिल की थी। उनके पिता SBI कर्मचारी थे और 2019 में निधन हो गया था।
- परिवार ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, लेकिन बैंक ने 5 साल तक कोई निर्णय नहीं लिया।
- हाईकोर्ट ने कहा – “अनुकंपा नियुक्ति में अति उदार दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता, पर आवेदन पर समय पर फैसला होना चाहिए।”
- परिणाम: याचिका तो विलंब के आधार पर खारिज की गई, लेकिन SBI पर ₹1 लाख हर्जाना लगाया गया।
👩🦰 43 साल पुराने हत्या केस में उम्रकैद
- मामला 1982, जालौन का है। एक विवाहिता की हत्या में पति समेत कई आरोपी बरी कर दिए गए थे।
- हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट का फैसला पलटते हुए पति अवधेश कुमार और सह-अभियुक्त माता प्रसाद को दोषी माना।
- दोनों को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा सुनाई गई।
👉 यह फैसला 43 साल बाद आया, जो न्याय प्रक्रिया की लंबी जद्दोजहद को दर्शाता है।
🏠 सुनवाई का मौका दिए बिना फ्लैट तोड़ने का आदेश रद्द
- मामला वाराणसी विकास प्राधिकरण (VDA) से जुड़ा है।
- VDA ने बिना सुनवाई दिए फ्लैट तोड़ने का आदेश जारी किया था।
- हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि फ्लैट मालिक को सुनवाई का पूरा अवसर दिया जाए और उसके बाद ही कार्रवाई की जाए।
👉 कोर्ट ने मामला VDA को वापस भेजा।
💳 चेक बाउंस मामले में सम्मन आदेश रद्द
- अलीगढ़ के व्यापारी राहुल जिंदल उर्फ राहुल अग्रवाल के खिलाफ चेक बाउंस केस में ट्रायल कोर्ट ने सम्मन जारी किया था।
- हाईकोर्ट ने पाया कि निर्धारित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ।
- नतीजा: सम्मन आदेश रद्द किया गया और केस को ट्रायल कोर्ट वापस भेजा गया, ताकि नए सिरे से आदेश हो सके।
✒️ सरकारी कलम की राय
इलाहाबाद हाईकोर्ट के ये फैसले साफ करते हैं कि –
- सरकारी संस्थानों को लंबित फाइलों पर जिम्मेदारी से निर्णय करना होगा।
- हत्या जैसे गंभीर मामलों में न्याय भले देर से मिले, लेकिन जब मिलता है तो यह सख्त और स्पष्ट संदेश देता है।
- किसी भी नागरिक को बिना सुनवाई के दंडित नहीं किया जा सकता।
- और निचली अदालतों को हमेशा प्रक्रिया का पालन करना ही होगा।
👉 ये सभी आदेश न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करते हैं।