✍️ सीतापुर बेल्ट कांड : न्याय की लड़ाई अब विधानसभा तक पहुँची
सीतापुर के बहुचर्चित बेल्ट कांड में अब शिक्षक समाज पूरी ताक़त से लामबंद हो चुका है। महमूदाबाद ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय नदवा के प्रधानाध्यापक बृजेंद्र वर्मा को जेल भेजे जाने और बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) अखिलेश प्रताप सिंह पर लगे गंभीर आरोपों के बावजूद उनके पद पर बने रहने ने पूरे शिक्षक समुदाय को आक्रोशित कर दिया है।
🏛️ विधानसभा अध्यक्ष से गुहार
प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन (PSPSA) उन्नाव की जिला कार्यकारिणी सोमवार को सीतापुर पहुँची और पूरे मामले को लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से मुलाकात की।
संगठन ने अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपते हुए बताया—
- बीएसए ने प्रधानाध्यापक पर शिक्षिका की फर्जी उपस्थिति दिखाने का दबाव बनाया।
- बीएसए कार्यालय में न केवल अभद्रता हुई, बल्कि बाबुओं द्वारा शिक्षक पर भीषण हमला भी किया गया।
- इसके बावजूद, केवल शिक्षक को ही जेल भेजा गया और कार्यालय कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
❓ सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति पर सवाल
जिलाध्यक्ष संजीन संखवार और मांडलिक मंत्री प्रदीप कुमार वर्मा ने कहा कि सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति का हवाला दिया जाता है, लेकिन यहाँ एकतरफा कार्रवाई कर शिक्षक को ही निशाना बनाया गया।
👉 बीएसए पद पर बने रहते हुए निष्पक्ष जांच असंभव है।
संजीन संखवार का कहना था—
“शिक्षक केवल पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि भविष्य निर्माता होते हैं। उन्हें गुरु, आचार्य और समाज की आत्मा कहा गया है। फिर उन्हीं से फर्जी उपस्थिति दिखाने जैसा सरकारी धन का दुरुपयोग करवाने का प्रयास क्यों?”
⚠️ मानसिक और सामाजिक दबाव पर चिंता
- मंत्री प्रदीप वर्मा ने कहा कि लगातार मानसिक दबाव और अभद्र व्यवहार से शिक्षक की स्थिति बिगड़ रही है।
- कोषाध्यक्ष अमित तिवारी ने सवाल किया कि आखिर बार-बार तीन और दस साल के ब्यौरे, सेल्फी और अनुचित निर्देशों से क्या उद्देश्य पूरा हो रहा है?
- जिला संरक्षक नरेंद्र सिंह ने कहा कि बच्चों और अभिभावकों के बयानों को दरकिनार कर देने से न्याय की तस्वीर अधूरी है।
🔎 विधानसभा अध्यक्ष की प्रतिक्रिया
संगठन की बातें सुनने के बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने स्पष्ट कहा—
“दोषी चाहे कोई भी हो, बख्शा नहीं जाएगा। शिक्षक पर हमले की निंदा करता हूँ और दोषियों को कड़ी सज़ा दिलाई जाएगी।”
🖊️ निष्कर्ष
सीतापुर का बेल्ट कांड अब केवल जिला या शिक्षा विभाग का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह शिक्षक समाज की इज्ज़त और अस्मिता से जुड़ा सवाल बन गया है।
“सरकारी कलम” का मानना है—
👉 जब तक इस मामले की निष्पक्ष जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी या रिटायर्ड जज से नहीं होगी, तब तक शिक्षक समुदाय का विश्वास बहाल नहीं हो सकता।
👉 यह लड़ाई केवल बृजेंद्र वर्मा की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के हर उस शिक्षक की है जो ईमानदारी से शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है।