🏫 दो साल से बिना शिक्षक चल रहा जूनियर हाईस्कूल — हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

🏫 दो साल से बिना शिक्षक चल रहा जूनियर हाईस्कूल — हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

स्थान: प्रयागराज | तारीख: कोर्ट आदेश, जवाब तलब 27 अक्तूबर तक

📢 शिक्षा का अधिकार और वास्तविकता

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को
निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है।
लेकिन, चित्रकूट जिले के मानिकपुर तहसील के रैपुरा गांव का एक जूनियर हाईस्कूल
पिछले दो वर्षों से बिना शिक्षक के चल रहा है।
यह स्थिति न केवल कानून के उल्लंघन को दर्शाती है बल्कि बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ भी है। ❌

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⚖️ हाईकोर्ट का हस्तक्षेप

इस मामले में दाखिल जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और
न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने राज्य सरकार से
27 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
यह याचिका रैपुरा निवासी राहुल सिंह पटेल द्वारा अधिवक्ता
जगदीश सिंह बुंदेला के माध्यम से दाखिल की गई। 📜

🏫 विद्यालय की दयनीय स्थिति

गांव का सरदार वल्लभभाई पटेल जूनियर हाईस्कूल राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त एडेड विद्यालय है।
इसमें 9 शिक्षक पद स्वीकृत हैं, लेकिन पिछले दो साल से एक भी अध्यापक नियुक्त नहीं है।
वर्तमान सत्र 2025-26 में कक्षा 6 से 8 तक 146 बच्चे पढ़ रहे हैं:

  • कक्षा 6 — 35 छात्र
  • कक्षा 7 — 46 छात्र
  • कक्षा 8 — 65 छात्र

विद्यालय में तीन चपरासी पद स्वीकृत हैं, जिनमें से दो रिक्त हैं।
केवल रामभवन नामक एक चपरासी के भरोसे ही विद्यालय किसी तरह संचालित हो रहा है। 😔

📝 शिकायतें और अनसुनी

ग्रामीणों ने 11 अगस्त 2025 को चित्रकूट के डीएम और
बेसिक शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपा।
आईजीआरएस (Integrated Grievance Redressal System) पर भी शिकायत दर्ज कराई गई,
लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मजबूर होकर ग्रामीणों को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। 📩

🎯 सरकार के लिए चुनौती

यह मामला केवल एक गांव या विद्यालय का नहीं है, बल्कि ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की हकीकत को उजागर करता है।
यदि समय पर शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई तो सैकड़ों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।
कोर्ट का हस्तक्षेप अब सरकार के लिए जवाबदेही तय करने का अवसर है। ⚠️

✅ निष्कर्ष

शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है और इसे सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
रैपुरा गांव का यह मामला शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है और यह स्पष्ट करता है कि
प्रभावी निगरानी एवं जवाबदेही के बिना शिक्षा का अधिकार अधूरा है। 🙏

आपकी राय? क्या आपको लगता है कि ग्रामीण शिक्षा की बदहाली सुधारने के लिए
सरकार को विशेष शिक्षा आयोग बनाना चाहिए?
अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें। 💬

(यह लेख कोर्ट आदेश और जनहित याचिका से संबंधित समाचार रिपोर्ट पर आधारित है।)

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