⚖️ इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: तकनीकी गलती के आधार पर भरण-पोषण याचिका खारिज नहीं की जा सकती
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दाखिल भरण-पोषण याचिका को केवल नाम में टाइपिंग जैसी मामूली तकनीकी गलती के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
यह फैसला न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा ने सुनाया और मुजफ्फरनगर के परिवार न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।
📌 मामला क्या था?
- नाबालिग बेटे की ओर से भरण-पोषण की अर्जी दाखिल हुई थी।
- याचिका में बच्चे की मां का वास्तविक नाम लिखने के स्थान पर टाइपिंग की वजह से एक गलत नाम दर्ज हो गया।
- परिवार न्यायालय ने इस तकनीकी त्रुटि के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी।
⚖️ हाईकोर्ट का रुख
हाईकोर्ट ने साफ कहा कि—
- तकनीकी आधार पर बच्चों का भरण-पोषण अधिकार प्रभावित नहीं किया जा सकता।
- मामला पुनः फैमिली कोर्ट को भेजा गया है।
- निर्देश दिया गया है कि याची फैमिली कोर्ट की अनुमति से अभिभावक का नाम सही करे और फिर कोर्ट उपलब्ध तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर नया आदेश पारित करे।
👨👩👦 बच्चों के हित सर्वोपरि
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का अधिकार बच्चे के कल्याण से जुड़ा है। इसलिए मामूली गलती के चलते इसे रोकना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
⚖️ अवमानना केस: आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी तलब
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी, गाजियाबाद डॉ. अशोक कुमार राणा को अवमानना प्रकरण में तलब किया है।
- यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने गाजियाबाद निवासी अश्वनी कुमार की याचिका पर दिया।
- कोर्ट ने पूछा कि आदेश की अवहेलना के लिए उनके खिलाफ अवमानना का आरोप क्यों न तय किया जाए।
- डॉ. राणा को 28 अक्टूबर को स्पष्टीकरण सहित व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने के निर्देश दिए गए हैं।
🔚 निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दोनों आदेश इस बात को रेखांकित करते हैं कि—
- न्यायालय का उद्देश्य तकनीकी खामियों से अधिक न्याय और अधिकारों की रक्षा है।
- साथ ही, आदेश की अवहेलना करने वाले अधिकारियों को भी जवाबदेही से गुजरना पड़ेगा।