नई कर व्यवस्था अब डिफॉल्ट: क्या आपको पुरानी व्यवस्था चुननी चाहिए? जानें पूरा सच! 💰🧾

नई कर व्यवस्था अब डिफॉल्ट: क्या आपको पुरानी व्यवस्था चुननी चाहिए? जानें पूरा सच! 💰🧾

वित्त वर्ष 2023–24 से सरकार ने नई कर व्यवस्था को पूरी तरह डिफॉल्ट बना दिया है। यानी, यदि आप कोई विकल्प नहीं चुनते हैं, तो आपका आयकर रिटर्न नई व्यवस्था के तहत ही दाखिल होगा। लेकिन अच्छी बात यह है कि वेतनभोगी और पेशेवर करदाता हर साल रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी व नई व्यवस्था के बीच स्विच कर सकते हैं।


नई और पुरानी कर व्यवस्था में मुख्य अंतर

पुरानी व्यवस्था के फायदे:

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  • मानक कटौती: ₹50,000
  • धारा 80C के तहत: ₹1.5 लाख तक की छूट
  • होम लोन इंटरेस्ट, मेडिकल इंश्योरेंस (80D), एजुकेशन लोन ब्याज, LTA जैसी कई छूटें उपलब्ध

नई व्यवस्था के फायदे:

  • सरल और कम स्लैब
  • मानक कटौती: ₹50,000
  • अन्य अधिकांश छूटें नहीं

कर स्लैब तुलना (FY 2023-24):

  • पुरानी: 0–2.5 लाख (0%), 2.5–5 लाख (5%), 5–10 लाख (20%), 10 लाख से अधिक (30%)
  • नई: 0–3 लाख (0%), 3–6 लाख (5%), 6–9 लाख (10%), 9–12 लाख (15%), 12–15 लाख (20%), 15 लाख से अधिक (30%)

कब बदलें कर व्यवस्था?

  • यदि आपकी आय अधिक है और आप 80C, 80D, होम लोन, एनपीएस आदि में अधिक निवेश करते हैं, तो पुरानी व्यवस्था लाभदायक हो सकती है।
  • यदि आपकी कटौतियां कम हैं और बचत सीमित है, तो नई व्यवस्था बेहतर है।

कैसे बदलें कर व्यवस्था?

1. आईटीआर-1 और आईटीआर-2 (वेतनभोगी/बिना बिज़नेस आय वाले)

  • आईटीआर फॉर्म भरते समय सवाल पूछा जाएगा: “क्या आप नई कर व्यवस्था से बाहर निकलना चाहते हैं?”
  • ‘हाँ’ चुनें और पुरानी व्यवस्था अपनाएं।

2. आईटीआर-3 और आईटीआर-4 (व्यवसाय/पेशेवर आय वाले)

  • सिर्फ एक बार ही पुरानी व नई व्यवस्था के बीच बदलाव संभव है।
  • नई व्यवस्था से पुरानी में आने के लिए फॉर्म 10-IEA भरना अनिवार्य है।

ध्यान देने योग्य बातें

  • पुरानी व्यवस्था चुनने के लिए 15 सितंबर तक समय पर आईटीआर दाखिल करना जरूरी।
  • विलंबित रिटर्न (31 दिसंबर तक) में पुरानी व्यवस्था का विकल्प उपलब्ध नहीं।
  • फॉर्म-16 में आपके निवेश और कटौतियों का विवरण होना चाहिए।
  • कर छूटों के सभी प्रमाण सुरक्षित रखें।

सरकारी कलम की राय ✍️

सरकार ने नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट बनाकर प्रक्रिया आसान जरूर की है, लेकिन बचत और निवेश को प्रोत्साहित करने वाली पुरानी व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करना समझदारी नहीं।
जो करदाता कर-बचत योजनाओं में निवेश करते हैं, उनके लिए पुरानी व्यवस्था अब भी बेहतर है।


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