शिक्षकों की नौकरी पर संकट: टीईटी अनिवार्यता के फैसले से मचा हड़कंप! 🏫✍️
देशभर के शिक्षकों के बीच इन दिनों बेचैनी बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने लाखों शिक्षकों की नौकरी को संकट में डाल दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों को दो साल के भीतर टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करनी होगी, वरना उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश? ⚖️
1 सितंबर को दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है:
- जिन शिक्षकों ने अभी तक टीईटी पास नहीं की है, उन्हें दो साल का समय मिलेगा।
- दो साल में टीईटी पास न करने वालों की सेवा समाप्त की जा सकती है।
- प्रोन्नति (Promotion) पाने के लिए भी टीईटी अनिवार्य होगी।
- सिर्फ वे शिक्षक जिनकी सेवा अवधि पांच साल से कम बची है, उन्हें टीईटी से छूट दी गई है, लेकिन प्रोन्नति के लिए उन्हें भी टीईटी पास करना होगा।
क्यों मचा है बवाल? 😟
- देशभर में लाखों शिक्षक 2011 से पहले नियुक्त हुए थे, जिनके समय टीईटी अनिवार्य नहीं थी।
- अब उन शिक्षकों से सेवा शर्तें बदलने के बाद टीईटी पास करने की मांग की जा रही है।
- शिक्षक संघ का कहना है कि यह अनुबंध और अधिकारों के खिलाफ है।
शिक्षक संघ का रुख और अगला कदम 🗣️
अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने इस मामले को लेकर कमर कस ली है।
- संघ के अध्यक्ष सुशील पांडेय और सचिव मनोज कुमार दिल्ली में वकीलों से विचार-विमर्श कर रहे हैं।
- संघ का कहना है कि नियुक्ति के समय जो नियम थे, वही लागू होने चाहिए।
- संघ सरकार पर नियमों में संशोधन करने का दबाव बनाएगा।
- कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के कानूनी विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं।
बंगाल का ताजा मामला: 9 साल बाद एसएससी परीक्षा 📜
पश्चिम बंगाल में हाल ही में 9वीं–10वीं के सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए नौ वर्षों बाद एसएससी परीक्षा आयोजित हुई।
- 2016 के पैनल में धांधली सामने आने पर 26,000 शिक्षक व गैर-शिक्षकों की नौकरी रद्द कर दी गई थी।
- अब नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई है।
क्या हो सकता है आगे? 🔮
- अगर सरकार दबाव में आई तो पुराने शिक्षकों को छूट मिल सकती है।
- अगर कोर्ट के आदेश को ही अंतिम माना गया तो दो साल में देशभर के लाखों शिक्षकों को टीईटी देनी पड़ेगी।
- इस बीच, शिक्षकों में असुरक्षा और असंतोष तेजी से बढ़ रहा है।
सरकारी कलम का दृष्टिकोण:
शिक्षकों के हित में यह जरूरी है कि नियुक्ति के समय जो शर्तें थीं, उन्हीं पर उनकी सेवा और प्रोन्नति तय हो। नए नियमों को पुराने कर्मचारियों पर थोपना न तो न्यायसंगत है और न ही व्यावहारिक। सरकार को चाहिए कि वह इस फैसले पर पुनर्विचार करे और शिक्षकों के अनुभव व सेवा को सम्मान दे।