🏠 बच्चे घर में क्यों हो रहे ‘नजरबंद’? अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे
पहले माता-पिता बच्चों को डांटते थे कि “कभी घर पर भी बैठ लिया करो”, लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट गए हैं।
तीन में से एक बच्चा स्कूल से लौटने के बाद अपने ही घर में कैद-सा हो जाता है और बाहर खेलने नहीं निकलता।
🔬 ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय का अध्ययन
ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने यूरोप और दक्षिण एशियाई देशों के 7 से 12 साल के बच्चों पर एक बड़ा अध्ययन किया।
- 2,500 से अधिक बच्चों को शामिल किया गया
- 34% बच्चे स्कूल के बाद कभी बाहर नहीं खेलते
- 20% बच्चे (हर 5 में से 1) हफ्ते में ही कभी-कभार खेल पाते हैं
- दक्षिण एशिया के बच्चों में यह समस्या ज़्यादा पाई गई
🧠 बच्चों के स्वास्थ्य पर असर
बाहर खेलने की कमी से बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
- 🧩 सामाजिक-भावनात्मक कौशल कमजोर
- 😟 व्यवहारिक व भावनात्मक समस्याएं बढ़ी
- 🏃♂️ बाहर खेलने वाले बच्चों में 60% बेहतर सामाजिक कौशल देखे गए
📊 अध्ययन के मुख्य आंकड़े
- कुल सर्वे में 50.82% पुरुष व 49.18% महिलाएं शामिल
- उद्देश्य: बच्चों के सामाजिक कौशल और मानसिक स्वास्थ्य का आकलन
- नतीजा: घर में कैद रहने वाले बच्चे ज्यादा तनावग्रस्त व कम मिलनसार पाए गए
❓ ऐसा क्यों हो रहा है?
- 📱 मोबाइल और स्क्रीन टाइम की बढ़ती लत
- 🏫 पढ़ाई और ट्यूशन का बढ़ता दबाव
- 🚫 सुरक्षा और ट्रैफिक को लेकर अभिभावकों की चिंता
- 🏙️ खेलने की खुली जगहों की कमी
💡 समाधान क्या हो सकता है?
- बच्चों को रोज़ाना कम से कम 1 घंटा आउटडोर खेल के लिए प्रेरित करें
- सुरक्षित खेल स्थलों का विकास करें
- स्कूलों में खेल और गतिविधियों को बढ़ावा दें
- अभिभावक बच्चों के साथ खेलें और स्क्रीन टाइम सीमित करें
क्या आप चाहेंगे मैं इसे सरकारी कलम वेबसाइट के लिए पूर्ण लेख मोड में बदल दूं —
ताकि यह खबर नहीं बल्कि सामाजिक जागरूकता बढ़ाने वाला लेख बन जाए?