🛑 पांच दिन रखा “डिजिटल अरेस्ट”, 50 लाख रुपये वसूले — साइबर ठगों ने बनाया सेवानिवृत्त निजी सचिव को शिकार
एसजीपीजीआई के सेवानिवृत्त निजी सचिव दिनेश प्रकाश प्रधान को पांच दिन तक “डिजिटल अरेस्ट” में रखा और
डरा-धमकाकर 50 लाख रुपये वसूल लिए। पीड़िता—दिनेश की पत्नी रश्मि—ने आरोपियों के खिलाफ पीजीआई थाने में
शिकायत दर्ज कराई है। 📱💸
🕵️ घटना का क्रम (सम्पूर्ण विवरण)
रश्मि के अनुसार, दिनेश (जो 2019 में सेवानिवृत्त हुए थे) के पास 18 अगस्त की दोपहर करीब 2 बजे अज्ञात नंबर से कॉल आई।
कॉल करने वाली ने कहा कि वह पहलगाँव थाने की इंस्पेक्टर अनिता वर्मा बोल रही हैं और दिनेश के खाते में
आतंकवादियों के 70 करोड़ रुपये ट्रां्सफर होने की बात कही गई — जिससे वह हतप्रभ हो गए। आरोपियों ने व्हाट्सएप पर
दिनेश के नाम का अरेस्ट वारंट भी भेजा और कहा कि जांच के सिलसिले में उनसे पूछताछ होगी। 🧾
आगे ठगों ने दिनेश को धमकाना शुरू कर दिया — कहा गया कि किसी को भी पूछने पर उनके पीछे लोग पड़ जाएंगे और
अगर कुछ हुआ तो तुम्हारे बच्चे की हत्या कर देंगे। इस तरह के भय से प्रभावित होकर दिनेश को अलग-अलग कॉल/वीडियो-कॉल के ज़रिये
पांच दिन तक कंट्रोल में रखा गया (डिजिटल अरेस्ट) और अंततः 22 अगस्त को कहा गया कि गिरफ्तारी से बचने के लिए पैसा देना होगा।
बचाव में दिनेश ने कुल 50 लाख रुपये वसूलकर इस्पहिया खातों में ट्रांसफर कर दिए। 😟
🔍 बैंक और पहचान का दुरुपयोग
आरोप है कि आधार कार्ड की जानकारियों का इस्तेमाल कर एचडीएफसी बैंक में एक खाता खोला गया, जिसमें कथित तौर पर
आतंकवादियों के 70 करोड़ रुपये ट्रांसफर होने का झूठा दावा किया गया। ठगों ने इसी बहाने दबाव बनाकर 70 लाख/50 लाख जैसी राशि वापस करवाने की
मांग की। 🔐
👮♂️ पुलिस कार्रवाई
पीड़िता रश्मि ने प्राथमिक शिकायत (FIR) पीजीआई थाना में दर्ज कराई है। इंस्पेक्टर धीरेंद्र कुमार सिंह के अनुसार
आईटी एक्ट के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है और पीड़ित द्वारा जिन खातों और नंबरों में रकम ट्रांसफर की गई और जिन नंबरों/आइडी का
उपयोग हुआ—उनका ब्योरा निकाला जा रहा है। पुलिस इस मामले की तह तक जाँच कर रही है। 🚓
⚠️ शिकायत में बताई गई अन्य बातें
- वीडियो कॉल करने वाले ने खुद को जेके पुलिस अधिकारी दीपक शर्मा बताकर बात की, लेकिन वीडियो में चेहरे की पहचान स्पष्ट नहीं थी।
- ठगों ने लगातार धमकियाँ देकर दिनेश को अपने नियंत्रण में रखा—जिसे पीड़ित ने “डिजिटल अरेस्ट” वर्णित किया।
- पीड़ित ने तत्काल स्थानीय थाना में रिपोर्ट दर्ज करवाई एवं बैंकों/आख़िरी ट्रांज़ैक्शन के विवरण साझा किये जाने का अनुरोध किया।
🛡️ साइबर ठगी से बचने के लिए जरूरी सुझाव
ऐसी घटनाओं से बचने के लिए निम्न सावधानियाँ बेहद आवश्यक हैं:
- 📵 कॉल/मैसेज में ब्लैकमेल या चरम दावों पर घबराएँ नहीं — तुरंत परिवार/कानूनी सलाह लें।
- 🔎 सरकारी अधिकारी कभी भी कॉल पर बैंक खातों में बदलाव या पैसा माँगकर नहीं बोलते — सत्यापित करें।
- 🏦 किसी भी संदिग्ध अनुरोध पर तुरंत अपने बैंक को सूचित करें और संभावित ट्रांज़ैक्शन रोकने का अनुरोध करें।
- 🧾 पहचान दस्तावेज़ों (आधार, पैन) की जानकारी किसी के साथ साझा न करें और यदि संभव हो तो इन्हें डिजिटल रूप से सुरक्षित रखें।
- 📸 किसी भी धमकी/संदेश का स्क्रीनशॉट रखें और इसे स्थानीय पुलिस/साइबर अपराध शाखा को सौंपें।
- 📞 तत्काल मदद के लिए राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन/स्थानीय पुलिस से संपर्क करें।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
क्या “डिजिटल अरेस्ट” कानूनी रूप से वैध है?
नहीं — “डिजिटल अरेस्ट” शब्द आमतौर पर ठगों की धमकी/डिजिटल नियंत्रण की स्थिति को दर्शाता है; गिरफ्तार करने का अधिकार केवल कानून-प्रवर्तक एजेंसियों को है।
मुझे ऐसा शिकार बनाया गया है — किसे सूचित करूँ?
लोकल थाना में रिपोर्ट दर्ज कराएँ, बैंक को तुरंत ट्रांज़ैक्शन्स रोकने के लिए सूचित करें और साइबर सेल/आईटी शाखा से संपर्क करें। स्क्रीनशॉट और कॉल रिकॉर्ड सुरक्षित रखें।