इलाहाबाद हाईकोर्ट के अहम आदेश: मातृत्व अवकाश, हिस्ट्रीशीट और दिव्यांगता प्रमाणपत्र पर सख्ती
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में तीन महत्वपूर्ण मामलों पर कड़े निर्देश जारी किए हैं, जिनका सीधा संबंध महिला कर्मचारियों के अधिकारों, पुलिस की मनमानी और दिव्यांग अभ्यर्थियों की सुविधा से है।
1. मातृत्व अवकाश न देने पर विभागीय निदेशक को तलब 🍼
मिर्जापुर की सुशीला पटेल की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के निदेशक को व्यक्तिगत रूप से तलब किया है। विभाग ने याची की दूसरी बार मातृत्व अवकाश की मांग यह कहते हुए खारिज कर दी कि दो प्रसवों के बीच दो साल का अंतर आवश्यक है।
- कोर्ट ने कहा कि 2022 में स्मृति गुड्डी केस में यह स्पष्ट हो चुका है कि ऐसा कोई कठोर नियम लागू नहीं है।
- निदेशक द्वारा दिसंबर 2024 में पुनः अवकाश अस्वीकार करने पर कोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी कर 1 सितंबर को व्यक्तिगत पेशी का आदेश दिया।
- न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा कि यह न केवल अदालत की अवमानना है, बल्कि महिला कर्मचारी के सांविधानिक अधिकारों का हनन भी है।
2. हिस्ट्रीशीट पर पुलिस को फटकार 🚔
सिद्धार्थनगर निवासी मोहम्मद वजीर की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा,
“पुलिस के पास अपनी पसंद-नापसंद के आधार पर हिस्ट्रीशीट खोलने का अधिकार नहीं है।”
- कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थनगर के 23 जून 2025 के आदेश को रद्द कर दिया।
- न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति संतोष राय की खंडपीठ ने कहा कि केवल आठ साल पुराने एक मुकदमे के आधार पर किसी को आदतन अपराधी नहीं माना जा सकता।
3. राइटर क्रैप से पीड़ित अभ्यर्थी को दिव्यांगता प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश ✍️
झांसी निवासी गोपाल की याचिका पर सुनवाई में हाईकोर्ट ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को एक माह के भीतर दिव्यांगता प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दिया।
- याची ने यूपी लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा पास की है और अब मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए लेखक की सुविधा की मांग की थी।
- एम्स दिल्ली और झांसी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने याची को राइटर क्रैप (Writer’s Cramp) से पीड़ित होने की पुष्टि की थी।
- कोर्ट ने कहा कि इस तरह की बीमारी वाले अभ्यर्थियों को लेखन सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
क्या है राइटर क्रैप?
यह एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें हाथ की मांसपेशियों में असामान्य ऐंठन होती है, जिससे व्यक्ति सामान्य रूप से लिख नहीं पाता।
निष्कर्ष
इन तीनों मामलों से स्पष्ट है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट न केवल सरकारी तंत्र की लापरवाहियों पर सख्त रुख अपना रहा है, बल्कि महिला कर्मचारियों, आम नागरिकों और दिव्यांग अभ्यर्थियों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।