काशी दर्शन के बहाने “वनवास” — बुजुर्ग माताएं बनीं परिवार की बेगानी
वाराणसी।
भक्ति और मोक्ष की नगरी काशी, जहां लोग अपने अंतिम समय में आत्मिक शांति की खोज में आते हैं, अब कुछ परिवारों के लिए अपने ही बुजुर्गों को “त्यागने” की जगह बनती जा रही है। राजकीय वृद्धाश्रम, दुर्गाकुंड के अधीक्षक देवशरण सिंह के अनुसार, पिछले छह महीनों में तीन ऐसी माताएं यहां लाई गईं, जिन्हें उनके ही बेटे “काशी दर्शन” के बहाने छोड़कर चले गए।
मां को भी न अपनाया, शव तक लेने से इनकार
इन तीन मामलों में दो माताओं को आश्रम द्वारा उनके घर पहुंचाया गया, जबकि एक महिला की वृद्धाश्रम में ही मृत्यु हो गई। दुखद यह कि जब सूचना दी गई, तो परिजनों ने शव लेने से भी मना कर दिया। अंततः आश्रम के कर्मचारियों ने स्वयं उनका अंतिम संस्कार किया।
“नई पीढ़ी की यह मानसिकता अत्यंत चिंताजनक है। अनुशासन और परिवार का महत्व सिखाना होगा, तभी ऐसे मामले थमेंगे।”
— देवशरण सिंह, अधीक्षक, राजकीय वृद्धाश्रम
केस 1: संपत्ति के लालच में काशी में छोड़ गई संतान
गाजीपुर की एक वृद्धा दशाश्वमेध घाट पर अचेत अवस्था में मिलीं। पुलिस ने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया। महिला ने बताया कि उनके तीन बेटे और बहुएं हैं, लेकिन संपत्ति के लालच में उन्हें काशी छोड़ दिया गया। बहुओं ने उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया। आश्रम के प्रयास और ग्राम प्रधान के आश्वासन के बाद उन्हें घर पहुंचाया गया।
केस 2: दर्शन का सपना, हकीकत में त्याग
आंध्रप्रदेश के करनूल की एक महिला पति के निधन के बाद अकेलापन महसूस कर रही थीं। अंतिम समय में उनका मन काशी दर्शन को तरसा। बेटों ने दर्शन कराने का वादा किया — और उन्हें यहां छोड़कर लौट गए। वृद्धाश्रम ने अपने खर्च पर उन्हें वापस घर भेजा।
एक समाज, दो चेहरे
जहां एक ओर काशी को मां समान मानकर लोग दर्शन करने आते हैं, वहीं कुछ संतानें अपनी ही मां को यहां लावारिस छोड़ जाती हैं। धर्म, तीर्थ और भक्ति के नाम पर यह मानसिकता न केवल अमानवीय है, बल्कि पारिवारिक मूल्यों की गहरी गिरावट का प्रमाण भी है।
सोचने की बात
काशी में मां गंगा की गोद में मोक्ष की तलाश करने वाले, अगर अपनी जन्मदात्री मां का हाथ छोड़ दें — तो क्या यह आध्यात्मिकता है या सिर्फ धार्मिक पर्यटन का दिखावा?