अलीगढ़ BSA द्वारा ” अध्यापकों के प्रति समाज की अनकही सच्चाई उजागर की गई ” …..पढ़िए विस्तार में

अध्यापक — **पुरानी धारणा** से **आधुनिक यथार्थ** तक 👩‍🏫➡️🚗

लिखित/संदेश: राकेश सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, अलीगढ़ • तारीख: 7/8/25 🇮🇳

हमें बचपन से ही जिस “अध्यापक की प्रतिमा” का चित्र दिखाया गया — वह अक्सर 50, 60, 70 के दशक की एक छवि रही है: टूटी साइकिल, फटा छाता, सीमित तनख्वाह और कमजोर सामाजिक स्थान। 🧭
इस पुरानी धारणा ने समाज में अध्यापक को एक कमजोर, निर्बल और सीमित संसाधन वाला व्यक्ति बना कर रख दिया था। पर क्या समय वहीं रुक गया है?

पुरानी धारणा — क्यों बनी और कैसे पनपी? 🤔

उस दौर में शिक्षा, संसाधन और सामाजिक सम्मान के परिप्रेक्ष्य अलग थे। अध्यापक अक्सर सरकारी वेतन पर निर्भर होते थे और जीवनयापन संघर्ष से भरपूर था। इसलिए लोगों ने एक सांचे में उन्हें बाँध लिया —
“अध्यापक = गरीब, क्षीण, सहनशील” जैसा एक निश्चित रूप बना दिया गया था।

परिवर्तन की हवा — अध्यापक अब बदल रहे हैं 🌬️

आज वही अध्यापक जिन्होंने मेहनत, नई पढ़ाई, प्रशिक्षण और अवसरों का सही उपयोग किया — वे आधुनिक जीवन जी रहे हैं। उन्होंने अपना घर बनाया, पहनावे बदले (जींस-टी-शर्ट), वाहन खरीदे (बुलेट या कार), काले चश्मे लगाए — और कुछ ने अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर बनाई। 🏠👖🕶️

WhatsApp Channel Join Now
WhatsApp Group Join Now
Telegram Channel Join Now

याद रखें: किसी भी इंसान का स्वरूप बदलने का मतलब यह नहीं कि उसने अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया है — बल्कि यह उसके जीवन के बेहतर होने का चिन्ह है।

आलोचना क्यों आती है — ईर्ष्या, पुरानी सोच या असमंजस? 🔍

बहुत से लोग परिवर्तन से असहज होते हैं। जब कोई अध्यापक अपने जीवन स्तर से-जुड़ी अच्छी चीज़ें अपनाता है, तो कुछ में जलन पैदा होती है — और फिर बिना तथ्यों के आरोप लग जाते हैं: “अध्यापक स्कूल नहीं आता, पढ़ाता नहीं”। यह निष्पक्ष नहीं है।

वास्तविकता — सरकारी अध्यापक का योगदान 📚

क्या आपने कभी गौर किया है कि प्राथमिक स्कूल के सरकारी अध्यापक अक्सर कई भूमिकाएँ निभाते हैं — कक्षा पढ़ाना, अतिरिक्त पढ़ाई कराना, बच्चे की बुनियादी शिक्षा सुनिश्चित करना? कई बार वे ट्यूशन, सहायक कोच, मार्गदर्शक सब एक ही व्यक्ति होते हैं।
वही शिक्षक, जो कम संसाधन वाले इलाकों में पढ़ाते हैं, बच्चों को बिना किसी अतिरिक्त सुविधा के ही आगे बढ़ाते हैं — और यह काम लाखों घरों की असल ज़रूरत है।

निजी स्कूल बनाम सरकारी स्कूल — जो दिखता है और जो होता है 🏫

कभी-कभी माता-पिता बड़े नामी-गिरामी निजी स्कूल चुन लेते हैं — पर निजी स्कूलों में भी अक्सर अतिरिक्त ट्यूशन और संसाधनों की ज़रूरत रहती है। दूसरी ओर, सरकारी विद्यालयों में कई अध्यापक बिना निजी सहारे के बच्चों को वही बुनियादी शिक्षा उपलब्ध कराते हैं जो ज़रूरी है।
इसलिए हमे केवल रूप या पहनावे के आधार पर निर्णय नहीं करना चाहिए।

हमारा अनुरोध — अध्यापकों को जीवन जीने दीजिए 🙏

अध्यापक भी इंसान हैं — उनका भी जीवन है, परिवार है, अधिकार है। यदि उन्होंने मेहनत कर के आर्थिक उन्नति की है, पहनावा बदला है, या बेहतर जीवन अपनाया है — तो उसे स्वीकार कीजिए।
हमारा असली लक्ष्य होना चाहिए: अध्यापक को बेहतर संसाधन प्रदान करना ताकि वे समाज को गुणी, सुसंस्कृत और शिक्षित युवा दे सकें। 🌱📖

हम क्या कर सकते हैं — व्यावहारिक सुझाव ✅

  • आलोचना की जगह सहयोग: अध्यापकों को सम्मान और सहयोग दें — दोषारोपण नहीं।
  • संसाधन मुहैया कराएं: बेहतर पुस्तकें, डिजिटल सामग्री और प्रशिक्षण उपलब्ध कराएँ।
  • स्थानीय निगरानी और समर्थन: स्कूल-समूह, अभिभावक-समिति के माध्यम से सकारात्मक प्रतिक्रिया दें।
  • समाज में शिक्षा का महत्त्व बढ़ाएँ: शिक्षक-सम्मान और शिक्षा-केंद्रित नीतियों का समर्थन करें।

अंतिम संदेश — सम्मान, समझ और भरोसा 🤝

पुरानी धारणाओं से ऊपर उठें। यदि आप कभी अध्यापक की मेहनत की तरफ ध्यान दें — तो आपकी रूह काँप जाएगी; यह सम्मान और कृतज्ञता की अनुभूति होगी।
अध्यापक समाज का एक अभिन्न अंग है — उन्हें बेहतर जीने दीजिए और उन्हें वह साधन दीजिए जिससे वे आने वाले जनों को बेहतर नागरिक बना सकें।

जय हिंद • जय भारत • जय शिक्षक 🇮🇳

— राकेश सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, अलीगढ़ (संदेश संदर्भ: 7/8/25)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top