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✍️ सरकारी कलम विशेष रिपोर्ट
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संकट की घड़ी में असली नेतृत्व वही होता है, जो खुद को सबसे पहले कठिनाई में डाले और दूसरों को बचाए। यह बात नारे या भाषणों में नहीं, बल्कि जापान एयरलाइंस के पूर्व CEO हारुका निशिमात्सु के जीवन से साक्षात सीखी जा सकती है।
जब दुनिया की सबसे बड़ी एयरलाइंस में से एक आर्थिक संकट से जूझ रही थी, तब इस नेता ने वह किया, जिसकी आज भी मिसाल दी जाती है।
📉 2007: जापान एयरलाइंस पर संकट के बादल
वर्ष 2007 में जापान एयरलाइंस (JAL) भारी आर्थिक संकट में थी। वैश्विक मंदी, ईंधन की बढ़ती कीमतें और प्रतिस्पर्धा के चलते कंपनी घाटे में जा रही थी। कर्मचारियों की छंटनी लगभग तय थी, वेतन में कटौती की आशंका थी और अंदर एक भय का माहौल बन गया था।
लेकिन उस समय CEO बने हारुका निशिमात्सु ने कुछ ऐसा किया, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया।
👨✈️ निशिमात्सु का नेतृत्व: खुद को सबसे पहले रखा कटौती में
- उन्होंने अपनी सैलरी घटाकर पायलटों से भी कम कर ली।
- सभी भत्ते और ऑफिस की सुविधाएं छोड़ दीं।
- वे बिजनेस क्लास छोड़कर इकोनॉमी क्लास में यात्रा करने लगे।
- और यहाँ तक कि उन्होंने कार छोड़कर लोकल बसों में सफर करना शुरू कर दिया।
वे न किसी आलीशान ऑफिस में बैठे, न बॉडीगार्ड्स से घिरे रहे। बल्कि एक साधारण कर्मचारी की तरह अपनी डेस्क पर काम करते थे।
💬 उनका एक प्रसिद्ध बयान था:
“अगर मैं गेट के उस पार महंगी कार से उतरूं और कर्मचारी अपनी नौकरी की चिंता में हों, तो वे मुझ पर कैसे भरोसा करेंगे?”
🔧 ऑफिस नहीं, टेबल पर बैठकर खाते थे लंच
निशिमात्सु ने CEO के आलीशान केबिन को छोड़कर, कर्मचारियों के साथ ही काम करना शुरू कर दिया। वे कैंटीन में नहीं, बल्कि अपनी साधारण डेस्क पर बैठकर सादा लंच करते थे — बिल्कुल वैसे ही जैसे एक आम कर्मचारी करता है।
🛫 परिणाम: भरोसे और नेतृत्व से मिली उड़ान
उनकी सादगी और समर्पण ने कर्मचारियों का भरोसा जीत लिया। कर्मचारी न केवल अपनी जिम्मेदारियों को और अधिक ईमानदारी से निभाने लगे, बल्कि कंपनी के लिए अतिरिक्त मेहनत करने को भी तैयार हो गए।
इस सामूहिक प्रयास ने JAL को संकट से उबारने में बड़ी भूमिका निभाई। निशिमात्सु ने यह साबित कर दिया कि नेतृत्व केवल आदेश देने में नहीं, बल्कि अपने आचरण से प्रेरणा देने में होता है।
📘 हारुका निशिमात्सु कौन हैं?
- जन्म: 1947, जापान
- शिक्षा: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से MBA
- JAL में 1972 से काम शुरू किया
- 2006 में CEO बने
- 2009 तक पद पर रहे
✍️ निष्कर्ष:
जब दुनिया में अधिकांश CEO संकट के समय बोनस और सुरक्षा तलाशते हैं, तब हारुका निशिमात्सु ने यह दिखाया कि एक सच्चा नेता वह होता है जो संकट में अपनी टीम के साथ खड़ा रहता है, न कि उनके ऊपर।
आज के दौर में, जब निजी लाभ को प्राथमिकता देने वाले नेतृत्व का बोलबाला है, तब हारुका निशिमात्सु की यह कहानी प्रेरणा और नैतिकता का एक अमूल्य उदाहरण है।
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