चिकित्सा शिक्षा विभाग में संयुक्त निदेशक पद पर नियुक्ति को लेकर बड़ा विवाद: बिना साक्षात्कार दिए ‘चहेते’ को दी गई जिम्मेदारी 🏥📋

चिकित्सा शिक्षा विभाग में संयुक्त निदेशक पद पर नियुक्ति को लेकर बड़ा विवाद: बिना साक्षात्कार दिए ‘चहेते’ को दी गई जिम्मेदारी 🏥📋

उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग में एक बार फिर नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। ताज़ा मामला संयुक्त निदेशक पद से जुड़ा है, जहां साक्षात्कार में शामिल हुए योग्य अभ्यर्थियों को दरकिनार कर, एक ऐसे व्यक्ति को पद दे दिया गया जिसने आवेदन भी नहीं किया और साक्षात्कार में भी हिस्सा नहीं लिया

यह पूरी नियुक्ति प्रक्रिया अब संदेह और आलोचना के घेरे में आ गई है।


🗓️ पूरा घटनाक्रम: कब, क्या हुआ?

  • 13 जनवरी 2025: चिकित्सा शिक्षा व प्रशिक्षण महानिदेशक ने सभी राजकीय मेडिकल कॉलेजों को पत्र भेजकर अपर निदेशक के एक पद और संयुक्त निदेशक के दो पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए।
  • 11 फरवरी 2025: चयन प्रक्रिया के तहत साक्षात्कार आयोजित किए गए।
    • संयुक्त निदेशक पद के लिए कन्नौज से डॉ. मधुलिका यादव, अंबेडकरनगर से डॉ. रीतेश कुमार राय, सहारनपुर से डॉ. अमित मोहन वाष्र्णेय और डॉ. दीपेश कुमार जैसे योग्य अभ्यर्थियों ने भाग लिया।
    • अपर निदेशक पद के लिए डॉ. गुलजारी लाल निगम और डॉ. खुर्शीद परवीन ने आवेदन किया था।
  • 30 मई 2025: चयन परिणाम घोषित किए गए।

चौंकाने वाली बात यह रही कि…

डॉ. गुलजारी लाल निगम, जिन्होंने अपर निदेशक पद के लिए आवेदन किया था, उनका चयन संयुक्त निदेशक पद के लिए कर दिया गया।

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❌ और सबसे विवादास्पद चयन रहा —
डॉ. सचिन कुमार, जो साक्षात्कार सूची में थे ही नहीं, न ही उन्होंने आवेदन किया था, उन्हें संयुक्त निदेशक पद पर नियुक्त कर दिया गया!

वे पहले से ही महानिदेशालय में संबद्ध थे, जिससे “चहेते” को नियुक्त करने का आरोप और भी मज़बूत होता है।


⚠️ नियमों की अनदेखी और विभागीय चुप्पी

इस पूरे मामले में विभागीय अधिकारियों के बचकाना जवाब और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना भी सामने आया है:

🔸 किंजल सिंह (महानिदेशक) — “चयन कमेटी करती है, मुझे जानकारी नहीं है।”
🔸 डॉ. आलोक कुमार (अपर निदेशक) — “मेरे कार्यभार ग्रहण करने से पहले चयन हो चुका था।”


🗣️ उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक का बयान

“अगर संयुक्त निदेशक पद पर नियुक्ति में नियमों की अनदेखी हुई है, तो इसकी जांच कराई जाएगी। विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”


🔎 महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं:

  1. क्या पहले से महानिदेशालय में संबद्ध होने के चलते एक “अपने” व्यक्ति को नियमों से ऊपर रखकर पद दे दिया गया?
  2. साक्षात्कार में शामिल होने वाले योग्य अभ्यर्थियों के साथ क्या प्रशासनिक अन्याय हुआ?
  3. क्या यह नियुक्ति पूर्व-निर्धारित थी?

📢 निष्कर्ष: पारदर्शिता और योग्यता पर चोट

चिकित्सा शिक्षा जैसी संवेदनशील और जिम्मेदार प्रणाली में अगर सिफारिश और पक्षपात को तरजीह दी जाती है, तो इससे न केवल योग्य अभ्यर्थियों का मनोबल टूटता है, बल्कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था पर जनता का विश्वास भी डगमगाता है।

👉 जरूरत है कि इस मामले की स्वतंत्र जांच हो और जवाबदेही तय की जाए।


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✍️ योग्यता को दबाना और चहेते को ऊपर चढ़ाना, सरकारी सिस्टम की सबसे बड़ी बीमारी बनती जा रही है — इलाज अब ज़रूरी है।

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