🧨 “2 साल बाद भी तैनाती अधूरी! कैंसर पीड़ित, दिव्यांग शिक्षकों के लिए आई बड़ी राहत – लेकिन विभाग में खेल का पर्दाफाश!”
📌 🔥 परिचय:
उत्तर प्रदेश के राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नत हुए शिक्षकों की तैनाती को लेकर बवाल मचा हुआ है। शिक्षा विभाग ने दिव्यांग, कैंसर पीड़ित और असाध्य रोगों से जूझ रहे शिक्षकों के लिए तैनाती में विशेष वरीयता देने का आदेश तो जारी कर दिया, लेकिन अब यह भी सामने आ रहा है कि कुछ शिक्षकों को पहले जॉइन कराकर फिर अचानक ट्रांसफर कर दिया गया! इस खेल पर शासन ने नाराजगी जताई है और दोषी अधिकारियों की सूची तलब कर ली गई है।
⚖️ तैनाती में मिलेगी अब “वास्तविक” वरीयता — ये शिक्षक होंगे लाभार्थी:
शासन ने माध्यमिक शिक्षा विभाग को निर्देश दिए हैं कि निम्नलिखित श्रेणियों के शिक्षकों को वरियता के आधार पर तैनाती दी जाए:
- दिव्यांग शिक्षक
- असाध्य बीमारी से पीड़ित शिक्षक
- कैंसर पीड़ित या उनके आश्रित
- जिनका सेवानिवृत्ति में दो साल से कम का समय बचा है
✅ यदि मांग की गई जगह पर पद रिक्त नहीं है, तो उन्हें वरिष्ठता के आधार पर पास के विद्यालयों में तैनात किया जाएगा।
🧑🏫 पदोन्नति तो मिली, लेकिन 70% शिक्षक अब भी खाली बैठे हैं!
- मई 2025 में, एलटी और प्रवक्ता ग्रेड से सैकड़ों शिक्षकों को प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नत किया गया था।
- लेकिन हैरानी की बात यह रही कि सिर्फ 30% ने ही जॉइन किया।
- कारण: अधिकतर शिक्षक चाहते थे कि उन्हें पास के स्कूलों में ही तैनाती दी जाए।
- कई ने पारिवारिक और स्वास्थ्य कारणों से भी आवेदन किया था कि उन्हें दूरस्थ क्षेत्रों में न भेजा जाए।
🕵️♂️ विभागीय ‘खेल’ का हुआ खुलासा — जॉइन के बाद अचानक तबादले!
- शासन को भेजी गई सूची में जिन शिक्षकों को तैनात दिखाया गया, उन्हें जॉइन कराने के बाद तबादला कर दिया गया।
- इस पर विशेष सचिव ने गहरी नाराजगी जताई है।
- पूछा गया है: “जब एक बार सूची बन गई थी, तो फेरबदल कैसे और किसके कहने पर हुआ?”
- अब संबंधित अधिकारियों की पूरी रिपोर्ट मांगी गई है, और कड़ी कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।
✅ अब क्या होगा?
- निर्देश के अनुसार अब विकलांग, बीमार और रिटायरमेंट के नजदीक शिक्षकों को तैनाती में राहत मिलेगी।
- साथ ही विभागीय गड़बड़ियों पर जवाबदेही तय की जाएगी।
- इससे प्रधानाध्यापक पदों को भरने की प्रक्रिया तेज होने की उम्मीद है।
📢 निष्कर्ष:
शिक्षा विभाग की आंतरिक राजनीति और गड़बड़ियों का खामियाजा आखिरकार बच्चों और शिक्षकों को ही भुगतना पड़ता है। शासन की सख्ती एक उम्मीद जगाती है कि अब तैनाती सिर्फ कागज़ पर नहीं, जमीन पर भी होगी।
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