शोध:- अपने किसी अत्यंत प्रियजन को खोने वाले लोग अगली दस वर्षों के भीतर मृत्यु के ज्यादा करीब आ जाते हैं।

📰  अपनों को खोने का दर्द – मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर

✍️ लेखक: सरकारी कलम टीम
📅 प्रकाशित: 27 जुलाई 2025


🔴 शोध का निष्कर्ष: दुख में डूबे लोग मौत के करीब

डेनमार्क के प्रसिद्ध जनरल प्रैक्टिशनर डॉ. मेट केजेरगार्ड नील्सन द्वारा किए गए एक व्यापक शोध में यह बात सामने आई है कि अपने किसी अत्यंत प्रियजन को खोने वाले लोग अगली दस वर्षों के भीतर मृत्यु के ज्यादा करीब आ जाते हैं। यह शोध 1735 लोगों पर आधारित था, जिसमें 62 वर्ष की औसत आयु के प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। शोध के नतीजों के अनुसार:

  • 66% ने अपने जीवनसाथी को खोया था।
  • 27% ने माता-पिता को खोया।
  • 7% ने अन्य करीबी संबंधियों को।

इनमें से अधिकांश को हृदय रोग, तनाव, डिप्रेशन, और अनिद्रा जैसी समस्याएं पाई गईं, जो धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य को अंदर से खोखला कर रही थीं।


🧠 मानसिक असर: अनिद्रा, बेचैनी और अकेलापन

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शोध में बताया गया कि प्रियजन के जाने के बाद लोग:

  • अकेले रहना पसंद करने लगते हैं,
  • सामाजिक मेलजोल से कतराने लगते हैं,
  • डॉक्टर के पास बार-बार जाना पड़ता है,
  • और ज्यादातर मामलों में बिना किसी कारण शारीरिक पीड़ा का अनुभव करते हैं।

💔 भारत में वियोग की सच्चाई: रिश्ते गहरे, आघात भी गहरा

भारत जैसे भावनात्मक देश में यह समस्या और अधिक गंभीर हो जाती है। इसका उदाहरण हाल ही में वरिष्ठ व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी के निधन से सामने आया, जिनकी पत्नी के निधन के 6 दिन बाद ही उन्होंने भी दम तोड़ दिया। यह दर्शाता है कि गहरा रिश्ता टूटने पर वियोग इतना पीड़ादायक हो सकता है कि व्यक्ति जीवन से ही मुंह मोड़ लेता है।


💊 समाधान: टॉक थैरेपी और पारिवारिक सहयोग जरूरी

डॉ. नील्सन और अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में:

  • टॉक थैरेपी (Talk Therapy) कारगर हो सकती है,
  • परिवार को अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार व्यवहार अपनाना चाहिए,
  • अकेलेपन को बढ़ावा नहीं देकर भावनात्मक सहयोग देना जरूरी है।

🌍 भारत बनाम विदेश: तलाक कम, भावनात्मक जुड़ाव ज्यादा

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तलाक के मामलों की दर मात्र 1% है, जबकि अमेरिका जैसे देशों में यह 87% तक है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में रिश्तों का भावनात्मक महत्व ज्यादा है, लेकिन जब वही रिश्ता टूटता है तो उसका आघात भी उतना ही गहरा होता है।


📌 निष्कर्ष:
अपनों को खोने का दुख सिर्फ एक भावनात्मक घटना नहीं है, यह धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालता है। भारत में ऐसे मामलों में जागरूकता और काउंसलिंग की बड़ी ज़रूरत है ताकि कोई भी दुख में अकेला न रहे।


🧠 सुझाव:
यदि आप या आपका कोई परिचित गहरे दुख से गुजर रहा है, तो चिकित्सकीय परामर्श, समर्थन समूह, और मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग ज़रूर लें। याद रखें, मदद मांगना कमजोरी नहीं, समझदारी होती है। ❤️


© सरकारी कलम | समाज की संवेदना के साथ
👉 www.sarkarikalam.com

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