🏫 स्कूलों का विलय और ‘आदर्श विद्यालय’ का दिखावा: क्या यह शिक्षा में सुधार है या महज दिखावटी राजनीति?
✍️ सरकारी कलम विशेष लेख
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में परिषदीय विद्यालयों के लिए 2,000 करोड़ रुपये की “कायाकल्प योजना” को मंजूरी दी है, जिसके तहत 500+ छात्र संख्या वाले स्कूलों को ‘आदर्श विद्यालय’ में तब्दील किया जाएगा। कागज़ों पर यह कदम जितना सुनहरा और प्रभावशाली लगता है, ज़मीनी हकीकत उतनी ही कटु और विडंबनापूर्ण है।
🔍 दोहरी नीति की पोल खोलती सच्चाई
एक तरफ सरकार सैकड़ों स्कूलों को “कम छात्र संख्या” के नाम पर बंद या मर्ज कर रही है, बच्चों को 2-3 किलोमीटर दूर भेजा जा रहा है, छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हीं परिषद स्कूलों को लेकर ‘आदर्श’ का ढिंढोरा पीटा जा रहा है।
🤔 सवाल ये उठता है —
अगर सरकार शिक्षा के प्रति गंभीर है, तो फिर गांव के स्कूल क्यों बंद हो रहे हैं?
क्या बच्चों की सुविधा, दूरी, और सामाजिक परिवेश का कोई मूल्य नहीं है?
🧒🏻 छोटे बच्चों पर दोहरी मार
कुर्मिनपुरवा, मिर्जापुर, बहराइच जैसे कई क्षेत्रों से आ रही खबरों में स्पष्ट हुआ है कि मर्ज किए गए विद्यालयों की दूरी बच्चों के लिए भारी पड़ रही है। स्कूल जाने में असुविधा, नामांकन में गिरावट और ड्रॉपआउट की बढ़ती संख्या इस ‘संघटनात्मक सुधार’ का कड़वा सच है।
🧾 अब सवाल उठता है — 2,000 करोड़ की योजना किसके लिए?
इस योजना के तहत स्मार्ट क्लास, ICT लैब, पुस्तकालय, क्लब रूम, पेयजल व्यवस्था जैसे अत्याधुनिक संसाधन उन स्कूलों को दिए जाएंगे जहाँ 500 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। यानी छोटे और ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों को फिर हाशिए पर छोड़ दिया गया।
🔁 क्या यह नया तरीका है निजीकरण को आगे बढ़ाने का?
पहले स्कूल बंद करो, फिर जिनमें बच्चे बचे हैं उन्हें ‘आदर्श’ बताओ। फिर धीरे-धीरे सरकारी स्कूलों का वजूद ही खतरे में डाल दो और निजी स्कूलों के लिए रास्ता साफ कर दो।
🤳 “स्मार्ट क्लास से पहले, स्मार्ट नीति जरूरी है”
क्या सरकार को यह नहीं समझना चाहिए कि शिक्षा केवल इमारतों और स्मार्ट टीवी लगाने से नहीं सुधरती? जब शिक्षक ही नहीं हैं, प्रयोगशाला नहीं है, ICT लैब्स सिर्फ दिखावे के लिए हैं और बच्चों का आधार तक अपडेट नहीं, तब ‘आदर्श विद्यालय’ किसे बेवकूफ बनाने के लिए हैं?
🛑 निष्कर्ष:
📌 सरकारी कलम इस नीति की कड़ी आलोचना करता है और मांग करता है कि—
सरकार को ये तय करना होगा — वो सच में शिक्षा देना चाहती है या उसका सिर्फ प्रचार।
जब एक तरफ आप स्कूलों को बंद करते हैं और दूसरी ओर करोड़ों रुपए फिजूल ढांचे पर खर्च करते हैं, तो यह “शिक्षा में सुधार” नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर राजनीतिक प्रपंच है।
पहले सभी बच्चों को नजदीक में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की गारंटी दी जाए, फिर ‘आदर्श’ शब्द का प्रयोग किया जाए।