⚖️ बिना पूरी जानकारी दिए ली गई अनुकंपा नियुक्ति, हाई कोर्ट से नहीं मिली राहत
📍 प्रयागराज | संवाददाता – सरकारी कलम
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस याची को राहत देने से इनकार कर दिया है, जिसने पूरी जानकारी छुपाकर अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त की थी। न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि:
“अनुकंपा नियुक्ति के लिए केवल मृतक कर्मचारी का आश्रित होना पर्याप्त नहीं, बल्कि न्यूनतम अर्हताएं और पारदर्शिता भी आवश्यक हैं।”
📝 क्या है पूरा मामला?
- याची विक्रांत सागर, निवासी हाथरस, को 1984 में अपने पिता की मृत्यु के बाद भारतीय रेलवे में डीएसएल क्लीनर के पद पर अनुकंपा नियुक्ति मिली थी।
- 1989 में वह सेवा से हटा दिया गया।
- 1990 में उसने पूर्व नियुक्ति की जानकारी छुपाकर बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक पद पर अनुकंपा नियुक्ति ले ली।
❗ कोर्ट के महत्वपूर्ण बिंदु:
- न्यूनतम योग्यता अनिवार्य है – अनुकंपा पर नियुक्त व्यक्ति को भी योग्यता की कसौटी पर खरा उतरना होगा।
- तथ्य छुपाना गंभीर अनुशासनहीनता – याची ने पूर्व सेवा और बर्खास्तगी की जानकारी छुपाकर अनैतिक कार्य किया।
- अधिकारियों की भूमिका भी जांच के दायरे में – कोर्ट ने उन अधिकारियों की भी जांच का निर्देश दिया है, जिन्होंने इस नियुक्ति में लापरवाही बरती।
🛑 सेवा से बर्खास्त, अपील भी खारिज
- जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA), हाथरस ने याची को 3 मार्च 2021 को सेवा से बर्खास्त किया।
- सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद, प्रयागराज ने 18 सितंबर 2022 को बर्खास्तगी का आदेश बरकरार रखा।
- अब हाई कोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी है।
🗣️ “सरकारी कलम” की टिप्पणी:
यह फैसला स्पष्ट करता है कि अनुकंपा नियुक्ति कोई अधिकार नहीं बल्कि एक सहानुभूतिपूर्ण छूट है, जिसमें भी ईमानदारी, पात्रता और सत्यनिष्ठा अत्यंत आवश्यक है। नियुक्तियों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व तय करने की दिशा में यह आदेश दिशानिर्देशक साबित हो सकता है।
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